झूंठो की बस्ती के होकर
झूंठो की बस्ती के होकर
झूठो की बस्ती के होकर, हमको झूंठा कहते हो,
कैसी फितरत है तुम्हारी, जाने क्या क्या कहते हो।
एक बार गिरहबां देखो, खुद कितने पानी मे हो,
सबमें दोष बताते हो, खुद क्या हो, क्या कहते हो?
गर यकीं नही है बातों पर, तो सच्चाई का मोल नहीं,
तुमने तो बस ठाना है, हमसा कोई और नहीं,
तुम जो कहो, या गैर कहे, सबका सच ही लगता है,
तथ्य सत्य है पतन का, जब गैर ही अपने लगते हों।
कुछ बातों को लेकर, जो बैर बढ़ाया है मन में,
क्या तुम में कोई कमी नही, सबको ठुकराया है तुमने,
न वेद-पुराण न पूजा से, मन का चाह हल होगा,
पाने से पहले दो तो कुछ, दोषारोपण क्यों करते हो?
रोते रहना, शिक़वा करना, नाकामी का नाम है ये,
रोज़ दुहाई देते हो, हे भगवान क्या है ये,
नहीं हुए संतुष्ट अगर तुम, ताउम्र कहानी रोओगे,
ऐसा क्या लाए थे, जो खो कर इतने रोते हो?