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Mohinder Kaur (Moni Singh)

Drama Tragedy

5.0  

Mohinder Kaur (Moni Singh)

Drama Tragedy

पिता

पिता

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पिता

जब तुम थे

तो कितने विरक्त..।


जो मिला

खा लिया

जो मिला

पहन लिया


अधिकांश समय

साथियों संग

पार्क में बिता लिया..।


अपना अधिकांश काम

खुद ही कर लिया करते थे

कभी किसी को

कष्ट न दिया करते थे..।


अंतिम समय पीड़ा को

भीतर ही छिपा लिया

सहा कष्ट भीतर

चेहरे से छिपा लिया..।


होने और न होने के बीच

पसर गया है मौन

ऐसी खामोशी

जो अब न टूटेगी..।


पिता

तुम अब भी हो

देह से परे

इन आँखों से परे..।


शायद जन्म मरण के

चक्कर से परे

मोह मुक्त

अज्ञात दुनिया में..।


उलझे संबंधों से मुक्त

शब्दजाल से मुक्त..

तुम्हारा प्राणमुक्त होना

कचोटता है क्यों

तुम्हारा चुपचाप चले जाना..।


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