दुर्दशा
दुर्दशा
बेटियों को बचाने की मुहिम
हो जाती है असफल
जब, दूधमुंही बच्चियों का
उनके ही पिता, भ्राता द्वारा
किया जाता है
शारीरिक व मानसिक शोषण।
क्यों नहीं पढ़ा पाते
इन दुशासनों के माता पिता
नैतिकता का पाठ ?
क्यों नहीं सिखाते स्त्री का आदर ?
राधा, सीता, मीरा
क्यों नहीं बनती इनकी प्रेरणा ?
जागो, उठो, पालकों !
जन्म देना ही तुम्हारा न काम
कुसंस्कारों से बचाकर
सही मार्गदर्शन भी
तुम्हारा ही काम।
बेटों को सही राह दिखाओ
अपनी बेटियों को दुर्दशा से बचाओ।