जीवन गागर
जीवन गागर


झुलसाती गर्मी के बाद
घिर आए जब बादल
और होने लगी बारिश
तन - मन को मिला
शीतलता का आँचल
बरामदे में बैठकर
चाय की चुस्कियों के संग
खुल गया यादों का पिटारा
मन रंगा अतीत के रंग
नदी बन जाती
गांव की गलियां
हाथों में थामे
कागज की किश्तियाँ
किश्तियों में तैरते स्वपन
स्वप्नों की डोर थामे
पहुंच गए महानगर में
साथ बनी रही
कागज की किश्ती
जो डूबती उतराती
आंधी - पानी में
पता नहीं कब किश्ती
नदी में समा जाए
और नदी बन जाए सागर
रिक्त हो जाए जीवन गागर