दरवेश
दरवेश
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वो गरीब दरवेश ठहरा
दर्द का उसकी जिंदगी में न कोई पहरा
खुश रहता है वह हरदम
बजाता है अलगोजा
देता है प्यार का पैगाम
बड़े अमीर, मंत्री, सिपाही
उसके आगे सिर झुका जाते
पाने को उसका आशीर्वाद
कुछ भी करने को तैयार है होते
निर्भय होकर घूमता वह
एक गरीब ऊपर से दरवेश ठहरा
रब को पाने की खातिर
छोड़ दिया हर फिक्र, पहरा
नहीं वह मोहताज़ किसी का
ख़ुशियाँ ही उसकी मोहताज़ ठहरी
जब से हुआ है बेफिक्र
रब ही करता उसकी फिक्र सारी