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Jyoti Deshmukh

Fantasy

4  

Jyoti Deshmukh

Fantasy

(मन)

(मन)

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कभी खट्टा, कभी मीठा इमली सा मन 

कभी भोर के सूरज सा आसमां में दौड़ लगाता मन 

कभी गुनगुनाता, कभी उदास सा, कभी फूल पर भंवरे सा मंडराता मन 


कभी ना समझ, कभी समझदार अल्हड़पन सा मन 

कभी सख्त, कभी मुलायम दूब सा मन 

कभी चाँद बन तारो सा चमचमाता मन 

कभी जुदा कभी साथ सपनों सा मन 


कभी तितली बन बाग में उड़ता मन 


कभी चंचल, कभी स्थिर नदी सा मन 

कभी उड़ान भर ता कभी शांत पंछी सा मन 

कोयल सी मीठी बोली बोले मन 

चिड़िया की तरह ची ची करता शोर मचाया करता मन 


कभी चक्री लिए लाल, पीली पतंग उड़ाता मन 

कभी विचलित, कभी सम्भावनाओं का विचार पैदा करे मन 

कभी हार की आशंका, तो कभी जीत का विश्वास दिलाता मन 

कभी उम्मीदों का पहाड़ खड़ा करता, तो कभी भय की अधिकता का तूफान ला देता मन 


जब गढ़ती शब्दों को तो लिख कोई गीत, कविता मन 

जब कहना चाहती कोई बात तो इबारत बना देता मन 

कभी इकट्ठा किए फूल तो हाथों से गुलदस्ता बना देता मन 

जब पकड़ती बारिश की बूंदें तो हाथों द्वारा कश्ती बना देता मन 

जब मैं बनाती कोई चित्र तो रंगों से इंद्रधनुष बना देता मन 

कभी फूल सा खिला, तो खुशियां मिल जाए तो प्रसन्न होता मन 

कभी दर्द, कभी आह को महसूस करता मन 

जब हो पिया साथ में तो प्रेम की परिभाषा कहता मन, कभी प्रीत के रंग दिखाता मन 

कभी तैर दरिया में बन मछली, चल बगिया में पकड़े तितली मन 

सैर करे घूमे दूर दूर वन, उपवन 

कभी झूमे कभी नाचे, कभी बिन कारण ही हँसता जाए मन 

कभी थका हो तन तो चादर तान बिस्तर पर कहानी कहता 

मन 

कभी अनवरत, अविराम कभी पास, कभी दूर उम्मीदों के विपरीत चलता मन 

कभी बेकाबू हो जाता सम्भाले से भी ना संभलता मन 

ऐसा चंचल, हिरण सा मन 



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