मैं किताब हूँ।
मैं किताब हूँ।
जिसके आंचल में छिपी शब्दों की महिमा,
हाँ कुछ याद आया न, मैं किताब हूँ।
तुम्हारे मन में हिलोरे लेते गोता लगाते,
अनगिनत सवालों का मैं जवाब हूँ।
मोबाइल की गिरफ्त में तुम हो,
अब तुम्हारे हाथों से मैं शायद आज़ाद हूँ।
बचपन से लेकर अब तक तुमने जो सीखा,
तुम्हें वही सिखाने वाला मैं किताब हूँ।
तुम्हें अब मेरी जरूरत महसूस न होगी,
पर पढ़ने वालों के लिये आज भी नायाब हूँ।
जिसे तुमने ज़िंदगी से दरकिनार किया,
मैं वही अस्तित्व खोता हुआ किताब हूँ।
सूर्य की रोशनी से अंधकार का सफर मुझ में
पर कभी चमक न खोने वाला आफताब हूँ।
जिसे तुमने अब महत्वहीन समझ लिया,
हाँ! मैं कहीं धूल खाता हुआ किताब हूँ।