तुम्हारी कमी है
तुम्हारी कमी है
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बसंत हर्षित आया है
कलियों पर रंग चटकाया है
धरा का हृदय मुदित है
पर तुम्हारी कमी है ,
सावन घटा गरजे हैं
मल्हार राग बरसे हैं
धरा का रोम रोम तर है
पर तुम्हारी कमी है ,
चांद नभ पर आया है
तारों की झुरमुट भी लाया है
निशा खेलती आंख-मिचौली
पर तुम्हारी कमी है ,
हृदय कोंपल मुरझाया है
अधर न ये मुस्काया है
आ जाओ अब कि
बस तुम्हारी कमी है।