मैं एक नारी हूँ..
मैं एक नारी हूँ..


मर्तबान में बंद कर सपनों को,
रसोई में जीवन काटा है,
दुनिया को कभी खिड़की,
कभी ड्योढी से झांका है,
आँगन में बिखरे दानों से,
उम्मीदों पर पलती हूँ,
मैं एक नारी हूँ...
पूजी जाती हूँ जब पत्थर हूँ,
मन्दिर की मुरत हो,
या हो खजुराहो की भित्ति,
वैसे घर में चारपाई हूँ,
बस दोहित की जाती हूँ,
मैं एक नारी हूँ...
वात्सल्य और प्रेम से,
पुश्तों को पाला है,
किन्तु बदले में भावनाओं का,
बंजर ही पाया है,
दर्द अपने भीतर ही
समाती हूँ,
मैं एक नारी हूँ...
उलझी हूँ,
अपने अंतर्द्वंद में,
जलती हूँ
अपने कस्तूरी गंध में,
पर बहती रहती हूँ,
अपने जीवन तरंग में,
मैं एक नारी हूँ...