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Deeksha Chaturvedi

Romance Classics Fantasy

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Deeksha Chaturvedi

Romance Classics Fantasy

मेरा चाँद

मेरा चाँद

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क्या कहूँ क्या ना कहूँ, कुछ कहूँ या बस यूँही चुप रहूँ,

दूर बैठी तुमको सबसे नज़रे छिपाते बचाते देखती रहूँ,

पलकें उठा कर जो तुम्हें देखा तो नजरें हटा ना सकीं,

तुमने इशारे से पूछा क्या है तो बस ना में सिर हिलाती रही,


नदियों के किनारे जैसे साथ चल सकते पर मिल नहीं सकते,

ज़मीन और आसमान भी क्या कभी एक हो सकते हैं,

हैरान हूँ ये प्यार कब हुआ, कुछ पता नहीं लगा सकी,

कब रोगी बनी और बिमारी का रोग लिया ये भी नहीं जान सकी,


इस एक तरफा प्यार में सब कुछ तो मेरा ही है…….

दुःख, दर्द तकलीफ……. तुमको तो इसकी ख़बर भी नहीं

कभी मिले तो मुस्करा कर ही मिलेंगे

आदतें कम हो जाती है बदलती तो नहीं,


और हंसकर दर्द छुपाने की आदत तो हमेशा से रही,

एक बात तो भूल ही गए चाँद कभी जमीन पर तो नहीं आता है,

बस दूर से ही अपनी चमक को जमीन पर बिखेरता है,

हम भी कितने पागल हैं जो चांद से दिल लगाते हैं,


कैसे चांद मेरा हो जायेगा, जिसके एक नहीं हज़ारों आशिक हैं !


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