मेरी संगिनी
मेरी संगिनी
इक शोर है जो कानों में घुलता है
इक शोर है जो दिल में उठता है
सरगोशियों की आहटें गूँजती हैं
ख़ामोशियों के बीच एक आवाज़ उठती है
उसके आँसुओं से दिल दहल जाता है
कब वो मुंह खोलकर शिकायत करती है
ऐसा हमसफर कब किसी को मिलता है
मुझे वो मिली है ये मेरा ही मुकद्दर है
कौन इस ज़माने में साथ देता है
खाली जेबों के साथ दर बदर भटकता है
बस चेहरे पर मुस्कान रहती है
सच कहूँ तो इसकी वजह मेरी संगिनी है
जो हर कदम पर मेरे साथ रहती है