खंडहर
खंडहर
यूं ही रास्तों से गुजरते दिख गया मुझे एक खंडहर,
देख कर उसे बैठ गया इस दिल में एक अनजाना सा डर,
कभी यह खंडहर भी हुआ करता होगा एक बहुत ही खूबसूरत सा घर,
जहां होती होगी चहल-पहल रौनक दिन-रात चारों पहर,
कभी आंसू, कभी आहें, तो कभी गूंजी होगी किलकारियां,
या किसी कोने में दफन हो गई होंगी किसी की दबी हुई सिसकारियां,
जीवन के हर रंग देखे होंगे इसकी हर एक दीवार ने,
न जाने कितनी पीढ़ियां देखी होंगी एक परिवार ने,
यह खंडहर तब घर था जब तलक एक ईंट दूसरे ईंट से जुड़ा था,
हिलने लगी नींव , जब घमंड और शक का हथौड़ा बार-बार पड़ा था,
जब हर एक ईंट को घमंड हो गया खुद पर,
आने लगी दरार खूबसूरत घर की हर दीवार पर,
उस दरार में जब दीमक ने बना लिया अपना घर,
देखते ही देखते वह घर बन गया खंडहर,