वक़्त
वक़्त
बदल गई वो डोर जो कभी थामी थी किसी ने ,
पिघल गई वो कश्ती कागज़ की तरह एक पल में ,
वक़्त ही तो था वो जो बदल न पाया
बैठे थे टूटी कुर्सी पे चार दोस्त एक पहेली की तरह ,
बदल गए वो मंज़र पर , वक़्त ही तो था वो जो बदल न पाया
कुछ शीशे के टुकड़े पखडंडी पे अज्ज भी बदले हुए हैं ,
इंतज़ार किसी का है , पर वक़्त हे तो है जो बदल न पाया
अधूरी से बातें कभी गूंजती है इन कानों में ,
मखमली धुप की तरह वो बदल जाती कहानियों में ,
पर वक़्त ही तो था वो जो बदल न पाया
लिबाज़ ओढ़े ये शरीर घूमता हूँ अँधेरे रास्तों में ,
रास्ते भी बदल गए , पर वक़्त ही तो है जो बदल न पाया .
उसकी बिसरि यादें कभी मेरी जहाँ में अति ,
वो पलकें जो कभी इंतज़ार करती थी ,
बूढी हो गई वो भी , पर वक़्त हे तो है जो बदल न पाया .
अज्ज भी रोज़ एक गली से अति आवाज़ दिलाती है याद तेरे आँखों की ,
टूट गई नीड टूट गया ख्वाब , पर वक़्त हे तो है जो बदल न पाया।