मानव
मानव
बड़ा दयनीय जीव है मानव! क्रूर नहीं वह तो एकदम भोला है !
बंधा हुआ है अपनी कल्पनाओं में ,लीन है नित रत है अपनी महत्वाकांक्षाओं में ।
स्वार्थ में अंधा ,दायित्वों से बंधा क्या करे बेचारा बंदा !
अधिक से अधिक पाने की चाह में भटक गया अपनी राह में ही राह से !
पहले तो वह खुद ही समस्याओं का जड़ बनता वही कारण बनता ! बाद में मारा फिरता बेचारा निवारण ढूंढता !
दुनिया का रहस्य समझाता ! अनसुलझी गुत्थी सुलझाता ! मगर अफसोस! उसकी खुद की गुत्थी ही अभीतक अनसुलझी है !
अदृश्य दुनिया का सैर कराता मगर वह खुद की दुनिया से अनजान! बेपरवाह!
अंधेरे में जी रहा वो भटक रहा होकर गुमराह!
भोलेपन की तो वह मिसाल है!
सच में उसकी लिप्साएँ बेमिसाल है !!