ज़ख्म
ज़ख्म
दिल के गहरे ज़ख्म मे छुपा के रखता हूँ।,
कभी कभी अकेले मे,आंखो से ब़हा देता हूँ।
दिल मे अगर दर्द हो तो सहन कर लेता हूँ।,
रोना मेरा छुपाकर,चहरे पर हंसी रखता हूँ।
पता है दिल के ज़ख्म कभी जल्दी भरते नहीं,
घाव नासूर न हो इसलिये दिल हमेशा साफ रखता हूँ।
ज़ख्म से दर्द बढे नही वह मे ध्यान रखता हूँ।
ज़ख्म का दर्द कम करने, प्रेम का मलम साथ रखता हूँ।
मीले हूँ, ए ज़ख्म स्थिर मन से देखा करता हूँ।
मीला हूँ।आ दर्द प्रभु चरण मे रख देता हूँ।
पता है मुझे ईश्वर यूँ आसानी से मिलता नहीं।
इसलिये ईश्वर को मृदुल मन में कैद रखता हूँ।