बचपन
बचपन
एक दिन बैठा था, लेके चित्र एल्बम पुराना,
याद आ गया मुझे मेरा बचपन का वो जमाना ।
खेलने लगी मन मे, वो बचपन की प्यारी यादें,
कुछ ही समय मे हो जाते,कुछ सच्चे झूठे वादे ।
खेल खेल में लड जाते,खेलते खेलते रुठ जाते,
फिर तुरंत दोस्त बन जाते,कट्टी बुची कर जाते।
ऐक आने की वो ढेर सारी खट्टी-मीठी गोली,
जो भर देती थी हमारी छोटी जेब की झोली ।
न कोई तेरी थी न मेरी, सभी चीज थी अपनी,
छोटी छोटी बांतो पर,करते हम चुगली सबकी ।
बात बात पर रोना और फिर तुरंत मुस्कुरा देना,
बचपन का मृदुल मन सबको सिखाता था जीना।