STORYMIRROR

Deepak Goyal

Tragedy

4  

Deepak Goyal

Tragedy

ग़ज़ल

ग़ज़ल

1 min
359

रो पड़ी ज़िंदगी फिर संवरते हुए

मुस्कुराने लगा था मैं मरते हुए


इश्क़ के रास्ते जाते जन्नत तलक

जाते हैं नर्क से पर गुजरते हुए


फिर न मुकरेंगे वादे से हम आदतन

उसने वादा किया फिर मुकरते हुए


फिर किसी पे न पत्थर चलाए गए

हम ने देखा जो ख़ुद को बिखरते हुए


शक्ल झूठी थी जब तक मेरे साथ था

अस्ल दिखलाई दिल से उतरते हुए.



Rate this content
Log in

More hindi poem from Deepak Goyal

Similar hindi poem from Tragedy