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Alka Ranjan

Tragedy

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Alka Ranjan

Tragedy

तू नज़र आता नहीं

तू नज़र आता नहीं

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क्या कसूर था उन मासूमों का, जो गुज़री उनपर हैवानियत ऐसी....

इंसानों के इस जहां में मुझको अब कोई इंसान नज़र आता नहीं...!!


अभी अभी तो उंगली थाम कर चलना सीखा था लख्त-ए-जिगर मेरा, अब उसे सुपुर्द-ए-खाक करना है..

कैसे करूँ कलेजे को पत्थर मैं ...मुझको कोई रास्ता नज़र आता नहीं..


कहाँ से लाऊँ वो हंसी मैं, जिसके गूंजते ही जी उठता था घर मेरा..

अब तो मुझको मेरे पते पर, खुद मेरा आशियाँ नज़र आता नहीं।


उस मासूम ने कभी तेरे सजदे में सिर झुकाया था जिसकी हिफाज़त को तू आ न सका

ऐ खुदा तेरे इस कायनात में, मुझे तेरे होने का अब कोई निशाँ नज़र आता नहीं।।



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