काश ! मै किताब
काश ! मै किताब
काश! मैं एक किताब होती
जिन्दगी के सुख-दुख
का हिसाब होती लौट
जाती पीछे जिन्दगी के
पन्नों के साथ जहाँ अपनों
का साथ और परायों की
हार होती किताब के पन्ने
पलट कर देखती हो तो लगता है
ऐसे कि वही दुनिया अच्छी थी आज
कि दुनिया से लोगों में एक अपनापन
सा था नहीं था छल फरेब और
धोखा डरी जमाने में।
काश मैं एक किताब होती तो अपने बचपन
में जाकर अपना बचपन जीती दुबारा जहाँ
थी न कोई चिता न था कोई बेगाना सब
अपने थे कोई नहीं था पराया हर किसी ने
आकर गले लगाया।
लेकिन मैं एक किताब होती ये एक सपना था
जब मैं सो कर उठी तो सपना मेरा टूट गया
सपना टूटने के साथ जिन्दगी पर से मेरा विश्वास
हट गया।।
