दुनिया गोल है
दुनिया गोल है
दुनिया गोल है ये पता है और आज तक भरपूर सुना भी,
पर ऐसे होंगी इस सच से रूबरू ये नहीं सोचा था कभी।
एक दिन आम पेड़ पे लटके दिखे एक आम की बगिया में,
देख के उन रसीले मीठे मादकों को एक ललक उठी मन में।
आँखों की ये तृष्णा पहुँची कुछ इस तरह क़दमों तक,
बढ़ गए वे बिना कोई पल गवाएं उस अमृत फलों के स्त्रोत तक।
जैसे ही छड़ी घुमाई हाथों ने आम झाड़ने को,
माली आ गया अपनी डंडी ले के मुझे ललकारने को।
लगाई ऐसी एक कड़क चोट पीठ पे मेरी,
कि अश्रुधारा बहने लगी व्याकुल अँखियों से मेरी।
भले ही हरकत किसी की भी थी दंड आँखों को ही मिला आखिरकार,
देखा जो था उन अमृतफलों को इन आँखों ने पहली बार।
दुनिया गोल है कुछ यूँ मिला मुझे साक्षात उदाहरण,
आँखों की खता आँखों पे ही भारी पड़ गयी मात्र लालसा पूरी करने के कारण।।
हक्की- बक्की रह गयी देख के सृष्टि के इस खेल को,
पहलू कोई भी हो ज़िन्दगी का,दिखा ही देती अपनी रचना की सर्वश्रेष्ठता को।