मेरे दिल की व्यथा...!!
मेरे दिल की व्यथा...!!
हवाओं को
सरसराते सुना है तुमने
शायद नहीं ....!
क्यों कि उसे सुनने के लिए
दिल की गहराई में
उतरना पड़ता है...!
तैरना होता है
उथले समुंदर में भी और
बहना होता है
उफान भरते लहरों के बीच...!
जब चांदनी रात में
जुगनुओं की रोशनी
चमकती है
पूरे कायनात में
और
भोर का सूरज
धीरे धीरे चढ़ते हुए
अपनी किरणों से
पूरे जग को
प्रकाशमान कर देता है,
तब उसकी तीक्ष्ण रोशनी
इन आंखों में
अनेक यादों के
प्रस्फुटित पुंज भरकर
फिर उसी यादों के भंवर में
भेज देता है,
जहां से निकलते निकलते
समय साथ छोड़ आया था।
सारा आसमान
बहुत गौर से
मुझे तकने लगा था
जैसे कहना चाहता था
बहुत कुछ
जो अनसुना रह गया था
एक अरसे से.....!!
ये सांसे
सिमटने घुटने लगती है और
बेचैन दिल बस
कुम्हलाया सा
शांत हो जाता है
दीवार पर लगी
जंग खाई घड़ी की तरह......!
हवाओं का स्पंदन
मेरे गालों को चूम कर
मुझे सुनाती है
अपनी व्यथा...!!!
थर थर कांपते होंठ और
कंपकंपाते जिस्म में
हवाएं छेड़ देती है संगीत,
जो सुनाई देती है
सिर्फ मुझे
मेरे डूबते दिल को
दूर दूर तक...! !
कोहरे की चादर में
लिपटे पहाड़
दूर तक फैले आसमान में
मेरी खुद की परछाई
मुझे बार बार
दिलाती है उसकी याद
और मैं रो पड़ता हूं
इन शांत बहती
हवाओं के संग...!