गजल : ये बिखरी जुल्फें
गजल : ये बिखरी जुल्फें
ये बिखरी बिखरी जुल्फें ये तीखे तीखे नैन
ये जादू भरी मुस्कान कर दे सबको बेचैन
ये अदाएं ये शोखियां ये मस्तियाँ ये जवानी
हाय, क्या अब जीने भी न देगी, सुन दीवानी
ये सुरूर ये गुरूर ये फितूर बड़ी मगरूर है
ये बांकपन कह रहा कुछ दिल में जरूर है
दिल में कोई तो बसा है किसी का तो नशा है
ये लकदक हुस्न देख क्या तू खुद पे फिदा है
कुछ तो इशारा कर इन चिलमनों की ओट से
एक बार नाम ही ले दे अपने गुलाबी होंठ से
श्री हरि

