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Madhu Gupta "अपराजिता"

Romance Tragedy Fantasy

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Madhu Gupta "अपराजिता"

Romance Tragedy Fantasy

ग़ज़ल...

ग़ज़ल...

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जब हंसी चुरा कर जाओगे तो थोड़ा सा तो घबराओगे l

अपने मन के कोने में कहीं तो थोड़ी सी हलचल पाओगे ll

जब भी मुझको तन्हा और उदास बैठा पाओगे l

तब मन ही मन तुम पीड़ा से ख़ुद से ही भर जाओगे ll

जैसे चुराकर सीप से मोती अंजाना ले जाता है l

जाते-जाते तुम भी तो काम वही कर जाओगे ll

जब जब देखोगे खिलती कलियां पेड़ों पर कैसे मुस्काती हैं l

तब हंसी हमारी को तुम बोलो कैसे पास अपने रख पाओगे ll

जब हंसी चुरा कर जाओगे तो थोड़ा सा तो घबराओगे ll



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