ग़ज़ल...
ग़ज़ल...
जब हंसी चुरा कर जाओगे तो थोड़ा सा तो घबराओगे l
अपने मन के कोने में कहीं तो थोड़ी सी हलचल पाओगे ll
जब भी मुझको तन्हा और उदास बैठा पाओगे l
तब मन ही मन तुम पीड़ा से ख़ुद से ही भर जाओगे ll
जैसे चुराकर सीप से मोती अंजाना ले जाता है l
जाते-जाते तुम भी तो काम वही कर जाओगे ll
जब जब देखोगे खिलती कलियां पेड़ों पर कैसे मुस्काती हैं l
तब हंसी हमारी को तुम बोलो कैसे पास अपने रख पाओगे ll
जब हंसी चुरा कर जाओगे तो थोड़ा सा तो घबराओगे ll

