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अनजान रसिक

Fantasy Inspirational

4.5  

अनजान रसिक

Fantasy Inspirational

मैं

मैं

1 min
362


मस्तमौला हूँ मैं,

हँसी का पिटारा हूँ मैं,

खुशियों का फौवारा हूँ मैं,

उत्साह की बहार हूँ मैं,

हाँ इसलिए कहलाती ज़िंदा हूँ मैं।


शांत सागर पर नृत्य करती लहरों को देख नाचने लगती हूँ मैं ,

बचपन चला गया मेरा यूँ तो, पर दिल से अभी भी बच्ची हूँ मैं,

वीरान महफिलों में एक अधपकी कली के माफिक हूँ मैं,

रोता है जहां ज़माना, मुस्कराहट की वजह बन जाती हूँ मैं,

सूनी महफिलों की शान हूँ मैं,

हाँ इसलिए कहलाती ज़िंदा हूँ मैं।


ज़िन्दगी का ज़्यादा तर्जुबा तो नहीं है,

सलीका जीने का आज भी सीख रही हूँ मैं,

संघर्ष बहुत किये पर ख़्वाबों से ना खाली हुई हूँ मैं,

हारी कई बार हूँ पर हिम्मत ना कभी हारी हूँ मैं,

सक्षम हूँ खुद में, किसी की मोहताज ना हूँ मैं,

हाँ इसलिए कहलाती ज़िंदा हूँ मैं।


कार्य कोई भी हो ज़िन्दगी में, प्रतिबद्ध सदा रहती हूँ मैं,

कृति व काया से नहीं, अपितु खूबियों से परखती हूँ मैं,

अरमान टूटे कितने ही, हौसला ना कभी हारी हूँ मैं,

ऐसी हूँ, वैसी सी हूँ, पता न कैसी सी हूँ पर अपने जैसी हूँ मैं,

हाँ इसलिए ही तो कहलाती ज़िंदा हूँ मैं।



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