माँ सीता
माँ सीता
धरनी बीच से आई थी जो,
औ धरती में समाई थी ।।
दरबार जनक की जो रही शोभा,
ब्याह राम संग आई थी ।।
राज तिलक की रही तैयारी,
विधिना लेख निभाई थी ।।
संग गयी फिर थी वह जंगल,
पंचवटी से से हेरायी थी ।।
दशानन हर ले गया जो लंका,
विमान बिठाय अंटाई थी ।।
युद्ध हुआ जब राम औ रावन,
अग्नि परीक्षा लाई थी ।।
शुद्ध खरी उतरी फिर माता,
चढ़ी विमान पर आई थी ।।
लेख विधाता दूजो धाया,
जंगल फेरी अंटाई गयीं ।।
लव कुश पुत्र तहाँ ही जाए,
सारी कला सिखलाई गयी ।।
वाल्मीकि तॅह रचे रामायण,
युद्ध कला बतलाई गयी ।।
अभिमान नष्ट तीनिऊ भाई,
कस लीला प्रभु कर लाई गयी ।।
घोड़ संग पुनि चले पवन सुत,
विधान यज्ञ पुनि लाई गयीं ।।
गान किए पुनि दुइनौ भाई,
राम कथा सब गायी गयीं ।।
आई वाल्मीकि संग सीता,
प्रमाण धरा पुनि पाई गयी ।।
अनुनय कीन्ह मात धरती पुनि,
धरती माता बुलाई गयीं ।।
धरती फटी मात प्रकटी पुनि,
चंचल सीय समाइ गयी ।।
सुन्दर भाग्य कहूँ कस मात,
किरदार समूच निभाय गयीं ।।