STORYMIRROR

Ashish Mishra

Abstract Fantasy Inspirational

4  

Ashish Mishra

Abstract Fantasy Inspirational

देख दिसम्बर

देख दिसम्बर

1 min
268

देख दिसम्बर बूढ़ा होकर

        गिनता अपनी रातें है

आने को तैयार जनवरी

       चार दिनों की बातें है


कैलेंडर ने चुप्पी साधी

        अंतिम साल महीने में

नयी रोशिनी लेकर बैठी 

       जनवरी अपने सीने में 

उस कोने में साल है बैठा

        ताके अपनी राहें है

देख दिसम्बर बूढ़ा होकर

        गिनता अपनी रातें है


अंतिम साल महीना सिकुड़ा

        बिस्कुट चाय की प्याली-सा

नया वर्ष है आने वाला

         उसपर एक मलाई-सा 

सर्द हवा में झूल रहा

         कैलेंडर लटका सोच रहा

 जल्दी गिनती गिनती कर लूँ

         स्वयं दिसम्बर नोच रहा 

 आशाओं से बात करेंगे

          उम्मीदों को गाते हैं 

 देख दिसम्बर बूढ़ा होकर

        गिनता अपनी रातें है।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract