दिसम्बर-जनवरी
दिसम्बर-जनवरी
देख दिसम्बर बूढ़ा होकर
गिनता अपनी रातें है
आने को तैयार जनवरी
चार दिनों की बातें है
कैलेंडर ने चुप्पी साधी
अंतिम साल महीने में
नयी रोशिनी लेकर बैठी
जनवरी अपने सीने में
उस कोने में साल है बैठा
ताके अपनी राहें है
देख दिसम्बर बूढ़ा होकर
गिनता अपनी रातें है
अंतिम साल महीना सिकुड़ा
बिस्कुट चाय की प्याली-सा
नया वर्ष है आने वाला
उसपर एक मलाई-सा
सर्द हवा में झूल रहा
कैलेंडर लटका सोच रहा
जल्दी गिनती गिनती कर लूँ
स्वयं दिसम्बर नोच रहा
आशाओं से बात करेंगे
उम्मीदों को गाते हैं
देख दिसम्बर बूढ़ा होकर
गिनता अपनी रातें हैं।