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Sasmita Jena

Classics

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Sasmita Jena

Classics

यादों की बारात

यादों की बारात

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अपने व्यस्त जीवन से जब बाहर झाँकी,

यादों की बारात को सामने आते देखी।

 

कुछ बड़े कुछ छोटे ,

कुछ रंगीन, कुछ धुंधले,

मानो पटाखे और फुलझड़ियाँ हो। 


वह पहली बार स्कूल जाना ,

आँखों से आँसुओं का बहना,

मानो किसी जंग की ओर कदम बढ़ाना हो। 


उस दो पहिये की सवारी को कैसे भूलूँ ,

जिस पर पापा बैठाकर, पूरी शहर घुमाते । 

चाहे मेला हो, या बाज़ार,

अपनी दो पहिये की सवारी थी बड़ी मज़ेदार। 


बारिश में भीगकर स्कूल से घर आना,

मम्मी से ज़ोर-ज़ोर की डाँट खाना। 

फिर गरम-गरम पकोड़े खाकर,

सब कुछ भुला देना। 


डर लगता था तो सिर्फ मम्मी की छड़ी से,

जिससे शायद ही कभी मार पड़ी हो।


वह पढ़ाई भी क्या पढ़ाई थी,

जो मिनटों में सुला देती थी। 

पढ़ाई की असली चिन्ता तो ,

परीक्षा और नतीजे के दिन होती थी। 


मम्मी पापा से छुपते-छुपाते,

नए टेलीफोन से ब्लेंक कॉल करना,

क्या था वह मस्ती का ज़माना। 


कॉलेज में पढ़ाई के साथ-साथ,

हड़ताल भी पाठ्यक्रम में शामिल था। 

शिक्षकों से ज्यादा, सीनियर्स का डर था। 


दोस्तों से रिश्ता तो गहरा था,

पर किसी की नौकरी लगते देख ,

दिल को चोट भी गहरी लगती थी। 

जब अपनी नौकरी लगी,

मानो सातवें आसमान पर पहुँच गयी। 


आसमान पर उड़ ही रही थी की,

स्मार्ट फ़ोन की घंटी बज उठी,

कुछ ही पल में यादों की बारात,

आँखों के सामने से ओझल हो गयी। 


अगर ये फ़ोन की घंटी न बजती,

यादों की बारात, कुछ और ही लम्बी होती। 


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