आईना
आईना
अगर मैं आईने से कह दूं,
मुझे तू ताकना बंद कर दे
तो क्या वो ऐसा करेगा,
शायद नहीं.....
आईने का तो काम ही यहीं है
वो दिखाता है आईना हर चेहरे को
और चेहरों पर चढ़े.....
नकाबों के पीछे की दुनिया
जिन्हें सिर्फ और सिर्फ
पढ़ पाते है हम और वो आईना.....
खतम कहाँ होता है....
आईने और इंसान का सफ़र
चलता ही जाता है ता-उम्र
पीढ़ी दर पीढ़ी .....
पूरक बन कर रह जाते है एक दूसरे के
सदियाँ बीत गयी....
ना तो आईना बदला ना इंसान
इंसान आईने को देख कर....
हँसता है रोता है.....
जब होता है तन्हा और दर्द से भरा...
तब उसको सिर्फ आईना ही याद आता है
कह डालता है....
अपने अंदर पनपती उन तमाम भावनाओं को
जिसे कहने से वो...
दूसरों से झिझकता हैं,
तब होता है....
आईना उसका सच्चा साथी और हमसफ़र
बहुत नायाब है ये रिश्ता....
एक बेजान वस्तु का मनुष्य के साथ
उसके अच्छे और बुरे सारे कर्मों का....
हिसाब रखता ये आईना......
ता- उम्र....