इश्क़ में सुध बुध खोकर हालत
इश्क़ में सुध बुध खोकर हालत
यह हार, यह चैन, गले की फांश बन गए है मेरी
ठीक ढंग से नहीं ले पा रही सांस भी छाती मेरी
फ़क़त यों ही आंखें परेशां है एक कज़री से मेरी
इश्क़ में सुध बुध खोकर हालत हो गई बुरी मेरी।
कहते है इश्क़ बला है फिर चाह क्यूं है तुझे मेरी
रातभर इश्क़ इश्क़ चिल्लाते रह क्यूं है रज़ा मेरी।
तेरे इश्क़ में सुध बुध खोकर आंखें तरस गई मेरी
तुझे कोई असर नहीं तुमने जैसे जान ले ली मेरी।
बेखुदी में तेरी राह तकते–तकते थक गई आंखें मेरी
लेकिन समंदर के अश्क सुख गए कोई ख़बर न मेरी।