छोटू की दीवाली
छोटू की दीवाली
कुछ लफ्ज़ उकेरे थे,
दर्द से कराहते मन के स्लेट पर,
सोचा कोई कविता तो सजनी चाहिए,
बेचैन ही सही पर, ये कलम ना रुकनी चाहिए..!
है जो फैली दूर तलक ये कालिख,
कहीं कोई लालिमा तो उगनी चाहिए,
मरू धरा को चीर पटल पर,
कोई दूब दिखनी चाहिए..!
है इम्तिहा का साल लेकिन,
मुस्कान अधरों पर खिलनी चाहिए,
माना है अँधेरा हर गली में,
कोई चरागाँ मयस्सर चाहिए..!
है झूठ के आईने सजे पर,
साया उभरना चाहिये,
आ कलम लिख दूँ कोई नज़्म चुनकर,
जिनसे ये हसरतें मुकम्मल चाहिए...!
हो ये दीवाली रौशन इस कदर,
'छोटू' मुस्कुराता ही मिलना चाहिए ...!