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Smita Singh

Fantasy

4  

Smita Singh

Fantasy

आ कहीं दूर चले।

आ कहीं दूर चले।

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असमानता, असहिष्णुता, संवेदनाओं की हीनता से परे,

भेदभाव ,शोषण, अविश्वास की जकड़न से परे,

मानव की मानवता जहां मरती हो, ऐसे जहां से परे,

आ कहीं दूर चले।


जहां मानव अनमोल हो, मानवता कुछ शेष हो

जहां नारी का सम्मान हो, उसका अस्तित्व विशेष हो,

जहां प्रेम बीज मन में स्फुटित हो, निःस्वार्थ जीवन हो,

जहां प्रसन्नता का राग हो, द्वेष का ना उद्गार हो,

ऐसे जहां के सफर में, आ कहीं दूर चले।


जहां ख्वाहिशों के आसमां पर, भावनाओं की चांदनी बिखरे,

जहां मुस्कुराहटों की सरगोशी में, चेहरों का बांकपन निखरे,

जहां स्वतंत्र, निश्छल, पुरवांइयों के बीच मासूम बचपन खेले,

जहां वंशवाद के दंश को ,कोख में बेटियां ना झेले।

छोड़ आये जहाँ पर अपनी सहृदयता, उस ओर एक बार लौट चले,

ना पा सके अगर खुद ,अपनी मासूमियत को वहां तो

ढूंढने स्वयं की स्वायतता को ऐ बन्दे!

आ कहीं दूर चले।



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