वो
वो
लिख कर वो मेरा नाम
कागज़ पर मिटाया करता है।।
खेल इक बेकस बेनाम
सा चलाया करता है ।।
दूर बियाबान में
हलचल सी हो रही है ।।
झांकता है कोई सदियों से चिलमन से
मगर, हर बार नज़र चुराया करता है ।।
उसकी तारीफ़ में हमने
बेहिसाब कसीदे पढ़े ज़नाब ।।
इक लफ़्ज़ मोहब्बत का कभी
उसकी ज़ुबान पर, न, आया करता है ।।
इश्क़ तो नाम का है
बस बहाना है नामाज़ी हूँ
बेमुरव्वती का फरमान
हमेशा से सुनाया करता है।।
उसकी टोका टाकी से
अब नफ़रत सी हो चली है ।।
गुफ्तगू-ए-मयार की
मियाद भी बेहद घट चली है ।।
इन्हीं मसलों को बार बार
क्यों उठाया करता है ।।
लिख कर वो मेरा नाम
कागज़ पर मिटाया करता है ।।
खेल इक बेकस बेनाम
सा चलाया करता है ।।
