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मैं उड़ूँगी ज़रूर

मैं उड़ूँगी ज़रूर

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ना जन्मसिद्ध अधिकार है

ना है कोई पंख हुजूर

यह मेरा विश्वास है कि

मैं एक दिन उड़ूँगी ज़रूर।


ताने कसने वालों के ताने

बहुत याद आते हैं

रह-रह कर मेरी आँखों में

आँसू आ जाते हैं।


अनजाने में ही सही

बड़े-बड़े सपने दिखा दिए,

वे सपने फिर मैंने

अपने गले से लगा लिए।


बहुत से लोगों का यूँ तो

मुझे तोड़ना है गुरूर,

देख लेना तुम भी

मैं एक दिन उड़ूँगी ज़रूर।


आसमान में पंछी को

जब भी उड़ते देखा,

बिना पंखों के मैंने

खुद उड़ने को सोचा।


मेरा हौसला ही मुझे

शायद नई पहचान देगा,

नहीं सोच सकता

कोई ऐसा सम्मान देगा।


छाया है मुझ में हर

पल एक यही सुरूर,

देख लेना तुम

मैं एक दिन उड़ूँगी ज़रूर।


मेरा वक्त भी

एक बड़ा सा कहर लाएगा,

मेरे हिस्से में फिर

शाबाशी लाएगा।


एक ही पल में

दुनिया पलटेगी,

बुरा वक्त अच्छी किस्मत

लेकर लौटेगा।


हर शख्स की ज़बान

कहने को होगी मजबूर,

देख लेना तुम

मैं एक दिन उड़ूँगी ज़रूर।


भले ही आज जिंदगी में

घोर अँधियारा है,

हिम्मत का होगा

एक दिन उजाला है।


जिस तरह अँधेरे में

तारे चमकते हैं,

हम किस्मत को

चमकाने का दम रखते हैं।


रोशनी होगी मुझ में

जैसे कोई कोहिनूर

देख लेना तुम

मैं एक दिन उड़ूँगी ज़रूर।।


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