Lokanath Rath

Action Inspirational

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Lokanath Rath

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वचन (तीसरा भाग )....

वचन (तीसरा भाग )....

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अशोक अपने संगीत के दुनिया में आगे बढ़ रहा था। रात को बिकाश जी से सारे बात सुनकर उसे नींद नहीं आया। वो अपने माँ, भाई और परिवार को दुःखी नहीं देख सकता। और अशोक को सरोज के बारे में पता है। वो सरोज को दो बार पुलिस से बचाया भी था। ये वो किया था अपनी भैया, भाभी और अपनी परिवार के इज्जत को बचाने के लिए। इसके बारे में वो किसी को कभी नहीं बताया। उस दोनों वारदात के बारे में सोचकर आज भी अशोक को डर लगता है और शर्म आता है सरोज को अपने रिश्तेदार बोल के किसी को कहने के लिए।


जब अशोक संगीत के दुनिया में नये नये कदम रख रहा था, तब वो अपने कालेज, बहुत सरकारी कार्यक्रम में अपनी गाना सुनाकर सबको मोहित करता था। अशोक स्वभाव में बहुत सरल और विनम्र था। उसको पुलिस अधिकारी, राजनैतिक नेता, सामाजिक संस्थान की कार्यकर्ता सब बहुत आदर करते थे और सम्मान भी देते थे। वो अपनी कुछ कमाई मे बहुत अनाथ आश्रम को देकर उनके साथ जुड़ा था। एक दिन जब सरोज कालेज में पढ़ता था, उसके दोस्तों के साथ मिलकर बहुत नशा करके कालेज के पास कुछ छोटे व्यापारियों को पहले से बहुत ज्यादा परेशान करते हुए उनसे पैसा वसूली जबरदस्ती डराकर कर रहा था। तब उनमें से कोई पुलिस को खबर कर दिया। पुलिस आकर सरोज और उसके नशेखोर गुन्डे दोस्तों को थाने ले लिया। संजोग से उस समय अशोक उस थाने गया था उसके एक गाने का कार्यक्रम को पक्का करने, जो की पुलिस एकाडेमी में होने को था। वहाँ वो सरोज को देखा और सरोज ने अशोक को मदद करने बहुत बिनती किया। ये देख थानेदार ने अशोक को सरोज के बारे में पूछे और बड़ी दुःख के साथ अशोक उसको रिश्तेदार बताया। फिर उसके कारनामे सुनकर अशोक बहुत मायूस हो गया था। उस दिन थानेदार अशोक के खातिर सरोज को धमकी देकर छोड़ दिए थे और बोले थे की आज के बाद दुबारा ऐसा काम करने से उसको सीधे जेल में बन्द कर देंगे। फिर सरोज माफ़ी माँग कर वहाँ से चला गया। फिर अशोक हाथ जोड़कर थानेदार जी को बोला था, " साहब इसके बारे में सबको नहीं बताइयेगा, नहीं तो मेरे परिवार पे भी काले काम का थप्पा लग जायेगा। "

तब थानेदार अशोक को वचन दिए थे और किसी को नहीं बोले थे। फिर कुछ महीने बाद अशोक उसके एक कार्यक्रम ख़तम करके उसके कमाई का कुछ हिस्सा अनाथ आश्रम को जब देने गया था, तब उस आश्रम में उसे सरोज नशे की हालात मे मिला था और उसके माँ अमिता देवी भी वहाँ मौजूद थी। अशोक वहाँ से उनको देखकर निकलने सोच रहा था तो आश्रम के संचालक अशोक को बुलाए। अशोक जाकर अमिता देवी को नमस्ते बोला। तब संचालक जी ने बताया की सरोज ने नशा करके कुछ अनाथ लड़कियों को इस आश्रम के अन्दर घुसकर उल्टा सीधा गली गलौज किया। तब संचालक उसे रोकने कोशिश किए, पर वो मानने को तैयार नहीं था। तब कहाँ से उसके माँ को खबर मिली और वो आकर बैठी है। अब उसकी माँ पुलिस को खबर नहीं देने का दवाओं डाल रही है। तब ये सब सुन के अशोक हाथ जोड़कर अमिता देवी को बोला, " आप थोड़ा सरोज को सुधारने की कोशिश कीजिये। ऐसा काम अगर वो करते रहेगा तो उसका भविष्य क्या होगा? ये सबके पीछे उसका ये नशा करने की आदत और उसके कुछ दोस्त है। अभी भी समय है उसे सुधार लीजिए। आप मेरे से बड़े है, में और क्या कह सकता हूँ? सिर्फ आपसे ये बिनती करता हूँ। " ये सुनकर अमिता देवी वहाँ सरोज को बहुत डांटें और रोते रोते अनाथ आश्रम के संचालक और अशोक को वचन दिए की सरोज आगे से ऐसा कुछ नहीं करेगा और सुधर जाएगा। फिर अमिता देवी ने बड़ी मुश्किल से सरोज को वहाँ से लेकर गये। अशोक का बात मानकर संचालक जी ने पुलिस को खबर नहीं किए। उनको अशोक के वचन पर भरोसा था। फिर अशोक उसके काम वहाँ से ख़तम करके घर गया था।


अशोक हैरान हो रहा था की सोचकर अभी तक सरोज बदला नहीं और अब उसका भाई को उसका शिकार बना रहा है। तब अशोक ने सोचने लगा कैसे उसको वो रोकेगा।


इधर सुचित्रा देवी सारे हिसाब और कारोबार अपने हाथ में लिए और पैसा का लेन देन सिर्फ उनके हाथों होने लगा। बिकाश जी ये देख बहुत ख़ुश हो रहे थे। आशीष मन ही मन बहुत ख़ुश था। सरोज अभी जब भी कुछ पैसा मांगता है तो आशीष ने उसके मज़बूरी उसको बता देता है। फिर सरोज ने अपनी नशे के लिए और कोई रास्ता नहीं पाकर, अपनी माँ अमिता देवी से जबरदस्ती करके एक सोने का हार ले लिया और जाकर उसी दुकान बेचने गया, जहाँ से अशोक ने उसे आरती की नाम लेकर बनवाया था और अमिता देवी को आरती ने दी थी। ये बात सरोज को मालूम नहीं था। जब दुकानदार ने वो हार देखा और सरोज को भी, तो उसे थोड़ा शक हुआ। वो थोड़ा अन्दर जाकर आशीष को बोला, "आशीष बाबू क्या आप अभी जो गहने अपनी बीबी के लिए बना के लिए थे, उमसे से एक हार चोरी हुई है? क्यूँ की कोई सरोज नाम का युवक उसे बेचने मेरे पास लाया है। " तब आशीष बहुत परेशान हुआ और दुकानदार को बोला, "आप अभी उसको कुछ पैसा मत दीजिये, दो दिन का वक़्त ले लीजिए। " दुकानदार आशीष के बात मानकर सरोज से कुछ बहाना करके दो दिन का वक़्त लिया और वो हार रखकर एक रसीद दे दिया । सरोज थोड़ा कुछ पैसा माँगा, तो दुकानदार उसको दो हज़ार रुपए दिए उससे जान छुड़ाने के लिए। फिर सरोज वहाँ से निकल गया। आशीष को दुकानदार इसके बारे में बता दिए।

आशीष उस दिन घर आकर आरती को सारी बात बताया। वो आरती और उसकी माँ अमिता देवी के ऊपर घुसा कर रहा था। वो बोला, "तुम्हारा भाई कभी सुधरेगा नहीं। और कितने मुझे उसके लिए बेइज्जत होने पड़ेगा। में सारे गम सिर्फ तुम्हें मेरा दिए हुए वचन पालन करने के लिए बर्दाश्त कर रहा हूँ। तुम भी तो थोड़ा तुम्हारी ममीजी को समझाया करो। " आरती आशीष के परेशानी समझ रही थी। वो अमिता देवी को फोन करके सरोज के इस नये करतूत के बारे में बोली और बहुत घुसा भी की। तब रोती हुई अमिता देवी सब आरती को बता दिए। आरती को कुछ समझ नहीं आ रहा था की कैसे सरोज को सही रास्ते में लेकर आएगी।


आशीष उदास होकर बैठा था, तब अशोक का फोन आया। आशीष ने फोन उठाकर अशोक से बात करते करते रोने लगा और बोला, " मैं तुम्हारे बिना बहुत अकेला पड़ गया हूँ। मेरे ऊपर अपनी सारे दिए हुए वचन को पालन करते करते मुसीबतों का पहाड़ गिर पड़ा है। कुछ रास्ता दिख नहीं रहा है। " अपनी भाई आशीष को रोते हुए सुनकर अशोक बहुत उदास हो गया। उसने अपनी माता पिता को वचन दिया है की कभी उसके भाई को कोई परेशानी आने नहीं देगा। अशोक ने आशीष को बोला, " भैया, आप बिलकुल परेशान नहीं होना। मैं कल आ रहा हूँ, पर आप से अकेले मिलूंगा। हम दोनों मिलकर सारे परेशानियाँ को दूर भगा देंगे। और कभी खुद को अकेले मत समझिएगा, मैं हूँ सदा आपके साथ, हर मुसीबत मे आपके साथ रहूँगा। ये मेरा आपको वचन है। "

तब आशीष को थोड़ा सुकून मिला और वो अशोक को मिलने का खुशी अपने दिल में छुपा के रखा। उधर अशोक अपने शहर आने को दो दिन का तैयारी किया।


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