वचन (भाग -सतरा )...
वचन (भाग -सतरा )...
आशीष घर पहुँच कर निशा देवी को प्रणाम किया और अपने कपड़े बदलने चला गाया। तब फिर बिकाश जी ने निशा के तरफ देखे और सुचित्रा देवी को बोलने लगे, " भाभीजी, मैं कैसे आप की और आप के परिवार की शुक्रिया अदा करूँगा बोल नहीं सकता। आप ने दिए हुए वचन को याद रखे और उसको निभाने को भी तैयार है, ये हमारे लिए बड़ा सौभाग्य की बात है। ऐसे हम दोनों ने अशोक को हमारे दामाद के रूप में देखने का सपने तो उसी दिन से देख रहे थे, पर कभी आप को या और किसी को बोलने की हिम्मत नहीं हुआ। कल आप से आशा और अशोक के रिश्ते की बात सुनने के बाद हम दोनों खुशी से सो नहीं पाए। और हमें पता चला की आशा भी अशोक पसन्द करती है। अब इन दोनों का रिश्ते को पक्का करने में कोई दिक्कत नहीं है। आगे आप जैसी अच्छा समझेंगे बोलिए और हम इसमें आगे बढ़ेंगे। अगर आप इजाजत देंगे तो में हमारे कुल पुरोहित जी को लेकर आ जाऊंगा, उनसे यहाँ बैठ के सारे रीति रिवाज की बाते कर लेंगे। " बिकाश जी का बात चल रहा था आशीष आकर वहाँ बैठ गया था। अब बिकाश जी का बात सुन के सुचित्रा देवी बहुत ख़ुश हों गये। उन्होंने आशीष के तरफ देखी और बोली, " अच्छा हुआ की आपने आशा से भी पूछ लिए। आज मैं सच में बहुत ख़ुश हूँ। अभी आशा हमारी घर की बहु बनेगी। मुझे लगता है हम लोग आशा की डाक्टरी की पढ़ाई पूरी ख़त्म होने तक थोड़ा इन्तजार करनी चाहिए। ये शायद कुछ महीने की बात है, जब उसकी पढ़ाई ख़त्म हो जाएगी। पर आप जैसे बोले, हम एक बार आपकी कुल पुरोहित जी से बात करके इन दोनों का सगाई कर देते है। फिर शादी छे सात महीने बाद करवाएंगे। आप उनसे बात करके समय लीजिए और जब वो चाहे यहाँ आसकते। मेरे हिसाब से ये ठीक रहेगा। अशोक भी उसका नया काम को लेकर थोड़ा अभी ब्यस्त है, तब तक उसको भी थोड़ा समय मिल जाएगा।" ये बात बोलने के बाद सुचित्रा देवी आशीष को पूछे, " तू क्या बोलता है? तेरे भाई से तेरा कोई बात हुआ है? "तब आशीष ने थोड़ा शास लेते हुए बोला," माँ, आप बिलकुल सही बोल रहे है। ये करने पे आशा और अशोक दोनों को थोड़ा समय मिल जाएगा। मे अशोक को बता दूँगा, जैसे आप लोग ठीक समझिये।" तब फिर आशा ने आकर वहाँ पहुँच गई। वो सुचित्रा देबी, आशीष, आरती और उसकी पिता माता को प्रणाम की। सुचित्रा देवी उसे अपने पास बिठा दिए। तब चाय नाश्ता भी आ गया। फिर आरती के साथ मिलकर आशा सबको परोसने लगी। जब चाय नाश्ता ख़त्म हुआ तो आशा और आरती मिल के सब बर्तन वहाँ से ले गए। आशा ने आकर बोली की वो आरती के साथ मिलकर खाने जा तैयारी करना चाहती है। तब सुचित्रा देवी ने बोली, " इस में पूछने की क्या है? ये तो तुम्हारी घर है। तुम और आरती दो बहेन जैसी हों। आरती तुमसे बड़ी है, उसे अब सिख लिआ करो। तब तक हम व्यापार के बात कर लेते है।" ये सुनकर आशा शर्मा गई और वहाँ से चली गई। तब बिकाश जी ने दुकान से जो कागज लाए थे उसको निकालकर एक एक करके सुचित्रा देवी को दिखा के समझाने लगे। आशीष भी उनका साथ देने लगा।
सब कुछ सुनने के बाद सुचित्रा देवी ने बिकाश जी को बोली, " अब ये वितरक का नया काम मेरे हिसाब से हम अपनी वो नई संस्था के नाम से लेना चाहिए। जो आशीष और अशोक के नाम पर है। अभी तो उस पे हम कुछ छोटा काम कर रहे है। आप तो मेरे साथ बैंक गए थे। हमें कुछ ऋण देने के लिए भी वो लोग तैयार है। पर अभी हम अपने पैसे से ये काम शुरू करेंगे और बाद में जरूरत पड़ने पर ऋण ले सकते है। अब उस कम्पनी को भी हमें परखना है। मेरे नाम पे बैंक में जो डिपाजिट का पैसा है, बिकाश जी आप उसे इस संस्था में डाल दीजिए। मेरे से सारे कागज बनवा लीजिए। हाँ, ये पैसे मुझे दोनों भाई मिलकर व्यापार को बढ़ा के, उनकी आमदनी से फिर वापस करेंगे। मुझे मेरी पोता पोती के लिए उसको रखना है। आप आशीष और अशोक को समझा दीजिए। और इस कम्पनी का मुख्य दफ्तर तो मुम्बई में है, अशोक वहाँ का काम देख सकता है। जो राशि उनके पास जमा रहेगा उसका सारे व्यवस्था कर लीजिएगा। अशोक को भी इसके बारे में सब बता दीजिए। अब मुझे थोड़ा आराम करना है और पोता पोती के संग खेलना है। अभी अपना आरती माँ बनने वाली है। मुझे उसकी देखभाल भी करनी है। आप लोग आगे बढ़िए।" सुचित्रा देवी की बात सुनकर आशीष ने बोला, " माँ, मैं अशोक को कम्पनी के बारे में सब कुछ अशोक को भेज चूका हूँ। वो भी उनकी दफ्तर एक बार जा चूका है। अब चाचा जी उसे आगे क्या करना है थोड़ा समझा देंगे, वो कर लेगा। मेरा भाई सब कुछ ठीक से करना जानता है। आपकी आशीर्वाद और पिता जी का आशीर्वाद के वजह हम दोनों ठीक है।" आशीष का बात सुनकर सुचित्रा देवी और बिकाश जी दोनों बहुत ख़ुश हों रहे थे। निशा देवी भी दोनों भाइयों के बीच इतना प्यार देख कर बहुत ख़ुश हुई। जो जो कागज की जरूरत थे, सब लाकार आशीष बिकाश जी को दिए। तब तक आरती ने आकर बोली की खाना तैयार है और समय भी हों गया है, तो सब खाना खाने आ जाए। सब वहाँ से उठकर खाने के लिए गए। आरती और आशा सबको परोसने लगे। फिर सुचित्रा देवी उन दोनों को भी बैठने के लिए बोली। वो लोग भी साथ मे बैठ गए। खाने मे जो भेंडी की सब्जी बनी थी, उसे आशा ने बनाई थी। उसे खाते हुए सुचित्रा देवी , आशीष और आरती सब बहुत ख़ुश हो गए। आरती ने बोली, "माँ, मुझे पता नहीं था की हमारे आशा अच्छा डाक्टर होने के साथ अच्छा सब्जी भी बना सकती है। आशा आज मुझे कुछ करने नहीं दी ।" तब सुचित्रा देवी आशा की सर पे अपनी हाथ फेरते हुए बोली, " कियूँ नहीं? ये तो सब अच्छी परवरिश की नतीजा। " सब खाना खाकर उठे। आशा सबको प्रणाम की। आशीष और आरती बिकाश जी, निशा देवी को प्रणाम किए। फिर वो लोग अपने घर के निकले। तब आशीष बोला की वो उन्हें गाड़ी में घर छोड़ देगा, कियूँ की बहुत रात हों चूका था। बिकाश जी अपनी बाइक को वहाँ छोड़ दिए और आशीष के साथ चले।
सब जाने के बाद सुचित्रा देवी अपनी कमरे में जाकर अरुण जी के तस्वीर के पास खड़ी होकर बोली, "आज आप की दिए हुए वचन सच होने जा रहा है। मुझे आशीर्वाद दीजिए की सब कुछ ठीक से कर पाऊँगी।"