बचन (भाग -पंद्रह )
बचन (भाग -पंद्रह )
आशीष ने अशोक को छोड़ने के बाद अपनी दुकान के और गया। उसे अशोक का जाने से जितना दुःख हो रहा था उससे ज्यादा दुःख और चिन्ता सरोज को लेकर हो रहा था। अब सरोज कब क्या करेगा इसी सोच ने उसे बड़ा परेशान कर रहा था। दुकान में फिर जब सुचित्रा देवी आकर उसे आशा के बारे में पूछे तो पहेले वो थोड़ा चौक गया, फिर उसने सारे बाते बता दिए। जब सुचित्रा देवी विकास जी से बात करने के बाद घर चली गई तो आशीष ने देखा की विकास जी कुछ सोच में डूबे हुए है। आशीष को लगने लगा सायद सुचित्रा देवी आशा को लेकर कुछ बात किए जो उनको परेशान कर रहा है, पर वो तो उनको बोला था की जो बात करनी है घर बुलाकर करने के लिए। आशीष को कुछ समझ नहीं आरहा था।वो दुकान की काम में लगा रहा। जब दुकान बन्द करके सब जाने लगे तो आशीष ने देखा की विकास चाचा उनकी घर के और जारहे है। अब आशीष को थोड़ा आश्चर्य लगा की असल में क्या बात है ? वो घर पहुँच के फटा फट मुँह हाथ धोकर निचे आया तो देखा विकास जी आचुके थे। आशीष को देख के सुचित्रा देवी उसे पास में बुलाई और बैठने को बोली। आरती आकर विकास जी को प्रणाम करके सबके लिए चाय और नास्ता बनाने चली गई।
थोड़ी डेर के बाद सुचित्रा देवी ने विकास जी को बोली, " आप की और इनके पिताजी के तो बहुत पुरानी दोस्ती है। आप हार वक़्त उनका साथ देते रहे और अबतक भी हमारा साथ दे रहे है। आपको याद है जब आप की बेटी आशा की जन्म हुई थी और उसकी पहेली शालगिरा पर आप और आपके दोस्त ने एक दुशरे को बचन दिए थे की आपकी बेटी हमारी बहु बनेगी। देखिए ईश्वर का माया। आशीष का शादी हो गया है। अशोक और आशा बचपन से एक दुशरे को जानते है। अब मुझे जो सुचना मिला है की वो दोनों एक दुशरे को पसन्द भी करते है। अगर आप बुरा ना माने तो हम उन दोनों का शादी करके दिआ हुआ बचन पूरा करना चाहते है। मुझे दोनों का रिस्ता पसन्द है। हाँ, आप एक बाप है और आशा भी डाक्टर बनने वाली है।होसकता है आप को अशोक पसन्द ना हों। अशोक भी उसका संगीत की दुनिआ में अभी आगे बढ़ रहा है। कोई जबरदस्ती नहीं, आप पहेले निशा भाभी और आशा से बात कर लीजिए। मुझे यही बात आप से करनी थिबा, इसीलिए आपको कस्ट दि, माफ कीजिएगा।" सुचित्रा देवी की बात सुनके विकास जी का परेशानी दूर हो गया। उन्होंने सुचित्रा देवी को बोले, " भाभी जी मुझे वो सब बहुत अच्छी से याद है। हम एक दुशरे को बचन दिए थे। ऐसे अशोक को कौन भला दामाद बनाना नहीं चाहेगा ? मुझे आज बहुत खुशी हुई की मेरे मन में जो बात दबा हुआ था, उसको आप बोल दिए। फिर भी जैसे आप बोल रही है, मुझे एकबार आशा और निशा से बात करलेने दीजिए। वो लोग भी बहुत ख़ुश होंगे।" इतने में आरती सबके लिए चाय और नास्ता लाकार रख दि। विकास जी पहेले ना करते थे, पर आरती की जोर देने पर चाय नास्ता किए।
जब वो घर के लिए निकले तो बोले, "में आपको काल बता दूँगा और फिर पंडित जी को बुलाकर आपके साथ बैठके तैयारी शुरू कर लेंगे।" फिर विकास जी अपनी घर के लिए निकल गए। तब आशीष ने सुचित्रा देवी की गले लगकर बोला, "माँ, आज में बहुत ख़ुश हूँ। " सुचित्रा देवी उसे पास में बिठाके बोली, " अब मेरी सारी चिन्ता दूर हो जाएगा। मेरे दो बहुएँ जब इस घर में होंगे तो शान्ति से मर सकती हूँ।" ये बात सुनकर आशीष और आरती दोनों थोड़ा अभिमान करके बोले, " माँ, आपकी यही बात बहुत दुःखी कर देता है। आप हमें छोड़ के कहीं जानेवाली नहीं हों। हमारे बच्चों को भी तो उनकी दादी के साथ खेलना है। ऐसी बात आप कभी नहीं करना।" तब सुचित्रा देवी ने उन दोनों को शान्त की और बोली, "ठीक है में कभी नहीं बोलूंगी। सच मे, मुझे तो मेरी पोते और पोती के साथ खेलना भी है!"
विकास बहुत खुशी होकर अपनी घर पहुँच गये। तब तक आशा हॉस्पिटल से आयी नहीं थी।
हाथ मुँह धोकर विकास अपनी पत्नी निशा को बुलाए और पास बैठने को बोले। विकास को इतने ख़ुश देखकर निशा ने पूछी, "क्या बात है, आज आप बहुत ख़ुश दिख रहे है ? क्या कुछ खजाना मिल गया ?" ये बात सुनकर हस हस कर विकास जी बोले, "तुम्हे याद है निशा, जब हम माताजी के मन्दिर में आशा की पहेली शालगिरा मना रहे थे! उस दिन हमारे अरुण जी ने जब आशा को अपनी गोदी में लिए, तब बोले थे हमें उनको एक बचन देने के लिए की हमारी आशा उनकी घर की बहु बनेगी। और हमारी बेटी की नाम आशा उन्होंने तो रखे थे। उस दिन में और तुम दोनों उनको और सुचित्रा भाभी को बचन दिए थे। आज तक ये बात सुचित्रा भाभी को याद है। और आशा की डाक्टरी पढ़ने के लिए जो खर्चे लगे थे उसको तो अरुण जी ने किए थे बोलकर की उनकी बहु की पढ़ाई में लगा रहे है। आज मुझे सुचित्रा भाभी घर बुलाई थी।वहाँ अशोक और आशा के शादी को लेकर बात की। अच्छा तुम बताओ तुम क्या चाहती हो और आशा को भी एकबार पूछ लेना की उसको ये रिस्ता पसन्द है की नहीं। में किसीको जबरदस्ती नहीं करना चाहता हूँ। सुचित्रा भाभी भी यही बोले है। ऐसे तो हमारा अशोक जैसे लड़का मिलना बहुत मुश्किल। वो बहुत समझदार और नेक स्वाभाब का इनसान है। मुझे तो अशोक और आशा की जोड़ी राम और सीता जैसे लगता है। इसीलिए आज में बहुत ख़ुश हूँ। ये बहुत बड़ा खजाना है मेरे लिए।" ये बोलते हुए विकास जी के आँखों से खुशी का आँसू टपक पड़ा।
तब मुस्कुराती हुई निशा ने बोली, "मुझे सब कुछ याद है। में सोच रही थी सायद सुचित्रा ब्याबी भूल गई होंगी। पर उनको भी इस दिए हुए बचन याद है। अशोक सच में बहुत ही अच्छा है। दुशरों के लिए अच्छा सोचता रहेता है।
आशा और अशोक बचपन से एक दुशरे को अच्छे से जानते है। अभी भी उनकी दोस्तों वैसी है। मुझे तो कभी कभी लगता है की सायद वो दोनों एक दुशरे को पसन्द करते है। इसमें आशा को पूछने की क्या बात है ? आप जो बोलेंगे वो थोड़ी मना करेंगी। फिर भी आज में उसे एकबार पूछ लूँगी। आप सच में मुझे आज बहुत ही खुशि के खबर दिए। मैं भी बहुत ख़ुश हूँ। अब में जाती हूँ सब्जी बनाने, आशा आने से में पूछ लूँगी।" इतना बोलकर निशा देवी रात की खाना बनाने चली गई। तब विकास जी अपनी अलमीरा से पुराने तस्वीर लो लाकार देखने लगे। उसमें आशा की बचपन की तस्वीर, अरुण जी के बहुत तस्वीर भी थे।
अरुण जी का तस्वीर को देख, विकास जी बोले, "देखिए आप तो हमें छोड़कर चले गए, पर अब हम आपको दिए हुए हमारे बचन नहीं भूले है। अब मेरी आशा आपकी बहू बनेगी, जैसे आप चाहते थे। अगर आप होते तो हम सबको और खुशी मिलता। में जानता हूँ आप का आशीर्वाद उन दोनों को सदा मिलते ही रहेगा। आपका अशोक में आपके साया हम देखते है। " तब विकास जी के आंखे नमी हो गए। वो तस्वीर को रख दिए। तब आशा भी आचुकी थी। वो अपनी कमरे में गई और कपडे बदलकर हाथ मुँह धो ली। उसे बहुत भूख लग रहा था तो वो निशा देवी को बोली। तब तक रात का खाना भी तैयार हो चुका था।
सब एक साथ बैठ के खाना खाए। विकास जी पहले खाकर उठ गए। उनके जाने के वाद निशा देवी ने आशा को पूछे, " अच्छा तू मुझे बता, हमारा ये अशोक तुमको कैसा लगता है ? में जानती हुँ की तुम दोंनो एक दुशरे को बचपन से जानते हों, फिर भी ऐसे पूछ लिआ। तुम जानती हो जब तुम एक शाल की थी तब अशोक के पिता माता और हम दोनों एक दुशरे को बचन दिए थे की तुम दोनों का शादी करवा देंगे। अगर तुम्हे अशोक पसन्द नहीं तो कोई बात नहीं, हम कुछ और लड़का तुम्हारे लिए देखेंगे।" ये बात सुनकर आशा ने अचानक बोल दि, "क्यूँ ? आपलोगो का वचन का कोई मतलब नहीं है क्या ?
अशोक में क्या कमी है ?" ये बोलकर आशा थोड़ा रुक गई और वहाँ से उठकर चली गई। तब निशा देवी थोड़ा मुस्कुराती हुई अपनी काम ख़तम करके शोने के लिए गई। वो देखे की विकास जी जगे हुए है।तब वो हँसते-हँसते बोली, " लाख लाख सुक्रिया माता रानी की, मेरी अंदाज सही निकला। आशा भी अशोक को पसन्द करती है। आप अब इसमें आगे बढ़िए। तब काश जी और निशा देवी ईश्वर को नमन करके शान्ति से सोने लगे।