Lokanath Rath

Abstract

2  

Lokanath Rath

Abstract

वचन (भाग -बिश )..........

वचन (भाग -बिश )..........

6 mins
294


महेश जी और अमिता एक साथ बैठकर चुप चाप खाना खाए | उसके बाद महेश जी अपनी कमरे मे चले गए | थोड़ी डेर बाद अमिता भी सारे काम निपटाके कमरे मे आगई | दोनों शोने की बहुत कोशिस कर रहे थे पर आँखों मे नींद नहीं आरही थी | अमिता देबी सोच रही थी सरोज का जनम से लेकर उसका बड़ा होने तक का एक एक पल | उसका हर इच्छा को पुरे करने मे कभी कोई कमी नहीं किए थे | उसे एक अच्छा इनसान बनने के लिए बहुत प्यार से समझाते थे | बहुत बार महेश जी से छुपाके सरोज का माँग को पुरे करते थे | उनको उसे इतना प्यार था की वो उसका छोटी छोटी गलतियां को नजर अंदाज़ कर देते थे | सायद उनकी यही प्यार के वजह से वो गलतियां करते गया और आज इंसानियत भी भूल गया है | अपने आप को अमिता देबी कौशने लगी और चुप चाप भगवान को पूछी, " कियूँ हमारे साथ ऐसे किए? एक ही बेटा है और उसको भी एक मुजरिम बना दिए!कितने बार सरोज ने मुझे बचन दिआ था की कोई गलत काम नहीं करेगा, पर सारे बचन वो तोड़ते गया और मे उसका सुधरने का सपना देखती रही | अब तो और कोई उम्मीद नहीं बचा है | सायद ये मेरी कर्मो का फल है |" ये सोचते सोचते उनकी आँखों से आँशुओं की धारा बहती रही |


उधर महेश जी सोच मे डूबे हुए थे की सरोज ऐसा कियूँ हों गया? उनकी परबरिस मे कुछ कमी रह गया था | वो इतना निचे गिर जाएगा कभी सोचे नहीं थे महेश जी | अब सारे ब्यापारी और समाज उनको एक दुशरे नजरों से देखने लगा है | किसीसे शर उठाके बात करने की अब उनमे हिम्मत नहीं है | ये सब सरोज के वजह से हों रहा है, जिसके लिए महेश जी ने कितने सपने देखे थे | उसको सुधारने के लिए भी प्रयास किए, पर उसमे नाकाम रहे |अब अपनी गाओं जाकर जब ये सारे बाते वो रिश्तेदारों से बोलेंगे, पता नहीं वो लोग क्या सोचेंगे? जो भी जैसा सोचे, पर वो सबको सच्चाई बता देंगे |ये सोचते हुए महेश जी के आँखों से आँशु बहती रही | ढेर रात को सायद रोते रोते अमिता देबी और महेश जी की आँखे थक गये और अपने आप बन्द होगए |


अगले दिन सुबह उठके महेश जी तैयार हों गए कियूँ की दश बजे वक़ील साहब के वहाँ जाना है और उसके बाद ब्याँक मे भी जाना है | वो तैयार होकर निकल रहे थे तो सुचित्रा देबी की फोन आई | उन्होंने पूछी, " समधी जी आप और समदन जी कैसे है? धीरज रखिएगा | हमलोग भी तो आपके है और कोई भी परेशानी हों तो बताइएगा | आप अभी सायद काम पे निकलेंगे, तो मेरी एक अनुरोध है आप समदन जी को हमारे यहाँ छोड़के जाइएगा | अकेली घर मे रहेने से वो और भी टूट जाएँगे | जरुरत पड़ने से आप बिकाश जी या आशीष को साथ लेकर अपना काम निपटा सकते है | असल मे कल रात को मुझे ठीक से नींद नहीं आई तो सुबह आपको फोन करदी |मे जानती हुँ आप अकेले सारे मुसीबतों का सामना कर सकते है | फिर भी खुद का ध्यान रखिएगा |" सुचित्रा जी का बात सुनके महेश जी थोड़ा अपना हिम्मत बढ़ा दिए और बोले, " आप जो बोल रही है बिलकुल सही बोल रहे है | मे अभी वक़ील साहब के पास होते हुए ब्याँक जाऊँगा |कितना समय लगेगा पता नहीं | जाते वक़्त अमिता को आप के वहाँ छोड़के जाऊँगा | बिकाश जी ने बहुत मदत किए मेरा और जरुरत पड़ने पर मे उनसे बात कर लूँगा | आशीष और आरती को और परेशान करना नहीं चाहाता हुँ | आप की ऐ बाते मेरी हिम्मत बढ़ा दिए | सुक्रिया समदन जी |" इतना बोलकर महेश जी ने फोन रख दिए | वो अमिता देबी को बोले फताफट तैयार होने के लिए, ताकि उन्हें वो सुचित्रा देबी के घर छोड़कर काम करने निकलेंगे | अमिता देबी कुछ बोली नहीं और तैयार होने लगी |


इधर महेश जी से बात करने के बाद सुचित्रा देबी आशीष को बोले, " बेटा तुम्हारा वो नई काम कितने दूर आगे बढ़ा है? तुम भी थोड़ा सरोज से बचके रहेना |पता नहीं वो कब क्या कर बैठेगा? तुम बाहर अकेले नहीं जाना | अगर कुछ काम के लिए जाना है तो साथ मे किसीको लेकर जाना | नशे मे इनसान जनुवार बन जाता है | मुझे कुछ नहीं चाहिए, बस तुम लोग मेरे पास ठीक ठाक रहो, इतना काफ़ी है | क्या करू बेटा नहीं चाहाते हुए भी मुझे डर लगने लगा है | " आशीष ने अपनी माँ की बात सुनकर उनकी पास बैठा और बोला, " माँ आप बिलकुल परेशान मत होना | आप जैसी बोलती हों मे वैसा ही करूँगा | हमारे दुकान मे सुरख्या का अच्छी प्रबंन्ध है | आप की आशीर्वाद है, हमें कुछ नहीं होगा |" इतना बोलकर आशीष तैयार होने लगा दुकान जाने के लिए |


आशीष तैयार होकर दुकान के लिए निकल गया | थोड़ी डेर बाद महेश जी अमिता देबी को लाकार सुचित्रा देबी के घर छोड़ दिए | वो तुरन्त वक़ील साहब के पास निकल गए | सुचित्रा देबी ने आरती को बुलाए और बोले उनके लिए और अमिता देबी के लिए चाय बनाके लानेके लिए | आरती अपनी माँ को प्रणाम करके चाय बनाने चली गई |तब अमिता देबी रोने लगी | उनको रोते हुए देख, सुचित्रा देबी उनकी पास आकर बोली, " देखिए समदन जी, आप अगर ऐसे टूट जाएँगे तो समदी जी को कौन सहारा देगा? आप दोनों ने सरोज के लिए बहुत प्रयास किए, पर वो खुद नहीं चाहाता एक अच्छा इनसान बनने के लिए |इस मे आप लोग भी क्या कर सकते है | हर पिता माता चाहाते है की उनकी औलाद बड़ा होकर बहुत तरक्की करें, नाम कमाए |और उसके लिए उसका सारे चाहत को पूरा भी करते है, जो आप लोगों ने किए |अब वो खुद गलत लोगों के बातों मे आकर गलत रस्ता चुना है, उसमे अब कौन क्या कर सकता है? आप मुझे बचन दीजिए की आप कभी रोएगी नहीं वल्कि आप समदी जी का हिम्मत और हौसला बढ़ाने का काम करेंगी | अब उसके लिए रोकर कियूँ खुद की मन और दिल को चोट पंहुचाएंगे? हम सब भी तो आप के अपने है | अभी आप नानी बनने जा रही है, उसका आनन्द लीजिए |" सुचित्रा देबी की बात सुनने के बाद अमिता देबी अपनी आँशु पोछ के बोली, " हाँ, आप सही बोल रही है | जो बेटा हमको अपना नहीं मानता, उसके लिए रोकर कोई फायदा नहीं है | मे उसके कारण इतनी बड़ी बात भूल गई थी की मे नानी बनने जारही हुँ | मे आज से और कभी रोउंगी नहीं |" तब आरती ने चाय और कुछ नास्ता लाई | अमिता देबी उसे अपने पास बिठाकर पूछी, " अब तू अपनी ख्याल ठीक से रखती है की नहीं? देख अब मे नानी और तेरी शास दादी बनने वाले है, तो बच्चे का ध्यान रखना बेटा | तुमको जो मन करें खाने को बोलना |" तब आरती ने बोली, "मेरी ख्याल तो माँ जी ने बढ़िया से रखते है | मुझसे कभी कभी कुछ भूल होजाता है | अब मे तो बहुत ख़ुश हुँ की हमारा अशोक का शादी होने वाला है | मे जेठानी बनूँगा |पर आशा मेरी छोटी बहेन है | बहुत अच्छी है |मे बहुत ख़ुश हुँ |"


अब ये सारी बातों से माहौल थोड़ा बदल गया | सुचित्रा देबी मन ही मन ख़ुश हुए की अमिता देबी को वो समझा पाई | उनको अमिता देबी की इस दिए हुए बचन पर यकीन होने लगा |


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract