वचन (भाग -इक्कीस )....
वचन (भाग -इक्कीस )....
महेश जी अमिता देवी को सुचित्रा देवी के घर छोड़कर वकील साहब के पास गए। वहाँ उनको देख वक़ील साहब बैठने के लिए बोले। उसके बाद जो दुकान का सरोज के नाम जरने का कागज बनाए थे दिखाए। उसके वाद वो महेश जी को बोले, " ये काम करने के पहले में आप की बिक्री कर का जो पंजीकृत क्रमांक है उसको ख़ारिज करने के लिए आवेदन करूँगा। आपका कुछ बकाया नहीं होने से ये एक दो दिन में हो जाएगा। आप सिर्फ एक आवेदन पत्र में अपनी दस्तखत दे दीजिए। अब आप जाकर अपनी दुकान के नाम जो खाता बैंक में है, उसको तुरन्त बन्द कर दीजिए। उसके बाद मुझे बोलिएगा।फिर दो दिन के वाद हम सरोज को बुलाकर कानूनन दुकान उसके नाम कर देंगे। सब कुछ ठीक हो जाएगा। आप परेशान नहीं होना।" इतना बोलकर वक़ील साहब महेश जी को आवेदन पत्र दिए उनकी हस्ताक्षर के लिए और उनकी एक सहायक को ये आवेदन बिक्री कर दफ्तर में देकर तुरन्त काम करवाने के लिए बोले। महेश जी उसके लिए कुछ पैसा निकाल के वक़ील साहब को दे रहे थे, तब वक़ील साहब बोले, " इतना नहीं हमारे सहायक को पूछ के जितना कम पैसा लगेगा दे दीजिए। मे अभी निकल रहा हूँ।" इतना बोल के वक़ील साहब निकल गए। महेश जी उनका सहायक को पुछ के कुछ पैसा दिए और वहाँ से सीधे बैंक के लिए निकल गए।
बैंक में पहुँच के महेश जी प्रबंधक जी से मुलाक़ात किए। उन्हें वो बोले की दुकान का खाता बन्द करना है और जो राशि जमा है उसको उनकी निजी खाता में जमा करना है। प्रबंधक महेश जी से सारे बात सुनकर उनका काम करने के लिए एक सहायक को बुलाकर समझा दिए। फिर महेश जी उनकी सहायक के साथ बैठ के उनकी बैंक की जो प्रक्रिया, उसको पूरा किए। ये सब काम करते करते करीब दोपहर का दो बज गया। उसके बाद महेश जी पास में एक होटल में कुछ खा लिए। फिर वो दुकान की तरफ गए। वहाँ पहुंच के वो देखे की सरोज के साथ बहुत लोग बैठे हुए है। वो दुकान का बाहर बैठे। अन्दर जाने को उनका मन नहीं हुआ। अन्दर वो लोग बैठ के अनाप शनाप बाते कर रहे थे, धूम्रपान भी कर रहे थे| फिर थोड़ी देर बाद एक लड़का आया और सरोज को पैसा देकर एक छोटा पैकेट छुपा के लेकर गया। ये देखकर महेश जी को यकीन हो गया की अब यहाँ से सरोज नशीले चीज बेचना शुरू कर दिए। वो उठ के जानेवाले थे तो सरोज आकर बोला, " क्या हुआ आपके काम का? अब आप को यहाँ आने की जरूरत नहीं।" ये सुन के महेश जी बोले, "और दो तीन दिन लगेगा। तुमको भी जाना पड़ेगा पंजीकरण प्रक्रिया में हस्ताक्षर करने के लिए। मैं बता दूँगा कब जाना है। तुम बिलकुल सही बोल रहे हों। यहाँ मेरा कुछ काम नहीं और मुझे आना नहीं चाहिए। अब मैं निकल रहा हूँ ।" ये बोलकर महेश जी वहाँ से निकलने लगे। आँखों में आंसू भी था और घुसा आ रहा था खुद पर। वो सोचे अभी अपनी गाँव में उनका चाचा के लड़के, जो उनका बहुत अच्छा दोस्त जैसा है, उसको फोन करेंगे और उनको फोन किए। घंटी बजने के कुछ देर बाद उन्होंने फोन उठाए और महेश जी बोले, " तुम लोग सब ठीक होंगे। थोड़ा मेरी बात ध्यान से सुन। अगले हफ़्ते में और अमिता गाँव आएंगे। यहाँ के दुकान अब सरोज संभालेगा बोला है। हमलोग वहाँ रहेंगे। अपनी खेती भी देखेंगे और तुम लोगों के साथ बाकि के जिन्दगी बिताएंगे। तू सिर्फ मेरे एक मदद करना। हमारी घर की चाबी तो तुम्हारे पास है, किसी को बुलाकर थोड़ा साफ सफाई करवा देना। जो खर्चा होगा मे दे दूँगा।" उन्होंने जवाब दिए, " अरे सब कुछ हो जाएगा। यहाँ अब हम सब मिल के बाकि का जिन्दगी काट देंगे। बस तुम लोग आ जाओ|" उसके वाद फोन दोनों ने काट दिए| महेश जी पास में शिव जी के मन्दिर जाकर उनका दर्शन किए और सुचित्रा देवी के घर के तरफ निकले अमिता को लेकर अपनी घर जाने के लिए। वो सुचित्रा देवी के घर करीब पाँच बजे पहुंच गए। वहाँ सुचित्रा देवी को सारी बात बताए। उनको महेश जी ने बोले, " वक़ील साहब के हिसाब से इस हफ़्ते सारे काम हो जाएगा। इसीलिए मैं गाँव में फोन करके बोल दिया हूँ की अगले हफ़्ते हम वहाँ जा रहे है। कम से कम वहाँ थोड़ा शान्ति से रहेंगे। बीच बीच में हम आप के पास आएंगे। और हमारी आरती भी माँ बनने वाली है। मैं नाना बन जाऊँगा। इसी खुशी को दिल में रख के आनन्द से जी लेंगे। हमारी सौभाग्य है की आप के जैसे सम्बन्धी हमें मिले। कभी किसी प्रकार का जरूरत होने पर आप हमें बोलिएगा। अब से मैं दुकान नहीं जाऊँगा। एक तो सरोज ने मना किया है और वहाँ आज ने देखा की वो नशीले चीज का कारोबार शुरू कर दिया है। मुझे शर्म आ रहा है ये बात आप को बताने में, पर आप तो हमारे अपने है। इसीलिए आप को बता दिया । वहाँ मैं आस पास की व्यापारियों से आँख नहीं मिला पा रहा हूँ। " इतना बोलने के बाद महेश जी चुप हो गए। तब तक आरती ने चाय नाश्ता लेकर आ गई। सुचित्रा देवी बोले, " समधी जी, मानता हूँ दुःख लगता है। हमें भी दुःख लगता है। पर हम सब कुछ कर नहीं पाएंगे। आप जो निर्णय लिए, बिलकुल सही है। आप की गाँव में भी हम लोग कभी कभी आ जाएँगे। अभी चाय पी लीजिए, फिर आप समधन जी को लेकर जाइएगा। उपरवाले पर भरोसा रखिए। " तब महेश जी चाय नाश्ता करके सुचित्रा देवी से बोलकर अमिता देवी को लेकर अपने घर निकल गए।
अपने घर पहुंच के महेश जी अमिता से बिस्तर में बात किए और बोले, " अगले हफ़्ते हम ये घर छोड़ के गाँव जाएंगे। मैं अभी मकान मालिक से मिलने जा रहा हूँ । तुम रात का खाना बनाओ। मैं आने के बाद फिर दोनों मिलकर सारे समान की पैकिंग करेंगे। जितना जल्द यहाँ से जाएंगे उतना अच्छा होगा। अब मुझे ऐ शहर में घुटन सा होने लगा है। मैं किसी से ठीक से आँख मिलाने को हिम्मत जुटा नहीं पा रहा हूँ । मानता हूँ तुम्हें तकलीफ होगी, पर हम और क्या कर सकते है? " महेश जी का बात सुन के अमिता ने बोली, " मुझे तकलीफ कियूँ होगा? आप जहाँ मैं वहाँ आपके साथ खुशी से दिन बिता सकती हूँ। मेरी दी हुई वचन आप भूल गए क्या? मैं भी आप को यहाँ इतना परेशानी में रहते हुए देख नहीं सकती। और गाँव में हम अपनों के साथ शान्ति से जिन्दगी बिता सकते है। जाइए आप मकान मालिक से मिलकर आइए।" तब महेश जी के ओठों पे एक छोटी सी मुस्कान आया और वो मकान मालिक से मिलने निकल गए।