वचन (भाग -शोलाह )....
वचन (भाग -शोलाह )....
सुबह उठकर बिकाश जी तैयार होने लगे। आशा तब तक तैयार होकर हॉस्पिटल निकल गई। बिकाश जी दुकान के लिए निकलने से पहले सुचित्रा देवी को फोन किए और बोले, " भाभी अगर आप आज शाम को थोड़ा वक़्त देंगे तो में और निशा आपके घर आकर कुछ बात करना चाहाते है। " ये सुनकर सुचित्रा देवी बोली, " आपको हमारे घर आने के लिए कबसे इजाजत की जरूरत होने लगा है? आप तो हमारे परिवार का एक हिस्सा है। और आज बहुत दिनों के बाद निशा भाभी भी आएँगे, ये तो हमारी सौभाग्य की बात है। हम आप दोनों ख इन्तेजार करेंगे।" फिर बिकाश जी उन्हें हाँ बोलकर फोन रख दिए। तब निशा देवी बिकाश जी के पास आकर बोली, "आज सुबह आशा बोल रही थी की छे महीने तक वो थोड़ा व्यस्त रहेगी, तो शादी की तारीख उस हिसाब से तय करना। हाँ उसकी इच्छा है की आगे पी.जी की पढ़ाई करने की है। जरुरत पड़ने से आप ये बात सुचित्रा भाभी को बता दीजिएगा।" ये सब सुनने के बाद फिर बिकाश जी बोले, " मेरा अभी भाभी जी से बात हुआ है। आज शाम को हम दोनों उनकी घर जाएँगे। वहाँ सब बात बैठके करेंगे। मे दुकान से थोड़ा जल्द आ जाऊंगा, तुम तैयार हो के रहना। " इतना बोलकर बिकाश जी दुकान के लिए निकल गए। निशा देवी बहुत ख़ुश थी। उनकी लाडली बेटी की शादी होने वाली है। और अशोक जैसा एक होनहार लड़का उनकी दामाद बनेगा। वो खुशी से जाकर भगवान को प्रणाम की।
बिकाश जी दुकान पहुँच गए। थोड़ी डेर बाद आशीष भी दुकान पर आ गया। जो नई कंपनी का बितरक का काम लेने का था उनका फोन आया आशीष को की थोड़ी देर बाद वो लोग उनकी दुकान आएंगे उनकी खेत्रीय संचालक के साथ। तब आशीष ने बिकाश जी को ये खबर दिआ। बिकाश जी बोले की सुचित्रा देवी को बताने के लिए। तब आशीष सुचित्रा देवी को फोन करके बोला, " माँ, अभी वो कम्पनी वालो का फोन आया था की वो लोग हमारी दुकान आ रहे है। उनकी खेत्रीय संचालक भी उनके साथ आएँगे। शायद बितरक का काम को नक्की करेंगे। क्या आप दुकान आओगी? " तब सुचित्रा देवी बोले, " अरे बेटा, मेरी आनेका क्या जरुरत है? तुम और बिकाश जी दोनों सारे बातें कर लेना। जो भी दस्तावेज उनको चाहिए दे देना। अब तुमको वो काम संभालना है। अगर कुछ जरूरत पड़े तो मेरे साथ बात कर लेना। ऐसे तो बिकाश जी हमारे घर शाम को आएँगे, तब सारी बाते बिस्तार से कर लेंगे। " सुचित्रा देवी की बात सुन के आशीष का हिम्मत बढ़ गया। वो उनको, ठीक है माँ बोलकर फोन रख दिआ। थोड़ी देर बाद कम्पनी वाले आगए। उनके साथ आशीष और बिकाश जी अलग से बैठ गए। वो लोग आशीष के साथ उनकी कम्पनी का सारे नियम बताया। बितरक बनने के लिए क्या क्या जरूरत है वो भी सब बताये। बिकाश जी सब कुछ लिख के रख रहे थे। फिर वो सारे लोग उनकी दुकान और गोदाम देखने के लिए आशीष के साथ गए। ऐसे करते करते दो घंटे बीत गया। फिर जाने का वक़्त वो लोग उनकी कम्पनी का बितरक होने के लिए एक समझौता का कागज और एक फॉर्म देकर गए, जिसको ठीकसे भर के देना होगा। वो बोल के गए की सब कागज ठीक से तैयार होने के बाद उनको फोन करने के लिए, ताकि वो लोग आकर उसे ले जाएंगे। उनकी जाने के बाद आशीष ने बिकाश जी को बोला, "आप ये सारे कागज अपने पास रखिए। आज शाम को जब आप घर आएँगे तब माँ के साथ थोड़ा बिस्तार से बात कर लीजिएगा। आप थोड़ा जल्द घर चले जाइए, मे दुकान बन्द करके घर जाऊँगा।" बिकाश जी सारे बात सुने और सब कागज को इकट्ठा करके एक जगा अपने पास रखे।
आशीष अपनी जगह पर आकर अशोक को फोन किआ। जब अशोक ने फोन उठाया, आशीष बोला, " अब तू क्या कर रहा है? खाना खा लिआ तो!" अशोक उसे बोला, " भाई, अभी थोड़ी देर पहले खाना खाकर अपनी कमरे में आया हूँ। शाम की पाँच बजे मुझे स्टूडियो जाना है। घर में सब कैसे है? सरोज का कोई खबर मिला क्या? " तब आशीष बोला, " उसकी बात छोड़। तुझे दो ख़ुश खबर अभी देनेवाला हूँ। हम सब बिलकुल ठीक है। पहेली बात हमको एक कम्पनी का बितरक का काम मिल गया है। जिसके बारे मे तुझे बोला था।अभी वो लोग यहाँ से गए। दुसरा बहुत बड़ी खबर। माँ ने बिकाश चाचा के साथ तुम्हारा और आशा के शादी की बात कर चूकि है। आज शाम को बिकाश चाचा और निशा आंटी हमारे घर आरहे है। सायद बिस्तार से शादी की बात आज करेंगे। अब तू ख़ुश है ना? में तो बहुत ख़ुश हूँ। घर में तेरी भाभी और माँ भी बहुत ख़ुश है इस रिश्ते को लेकर।" ये सुनके अशोक थोड़ा चुप रहा और बोला, "भाई, इतना जल्द शादी करने मे थोड़ा दिक्कत होगा। कम से कम छे सात महीने बाद होने से ठीक रहेगा। तुम थोड़ा माँ को समझा देना। मेरा कुछ गाने का रिकॉर्डिंग तब तक ख़तम हों जाएगा। थोड़ा मेरी मदद करना।" तब आशीष ने हसते हुए बोला, "ठीक है मे कुछ करता हूँ। तू चिन्ता नहीं करना।अपनी काम पे ध्यान देना। और तेरा वो सिनेमा, जिसमें तू गाना गाया है, वो कब परदे पर आएगा बोल?"तब अशोक ने बोला,"सायद और दो महीने बाद वो सिनेमा परदे पर आएगा। मैं सारे तारीख बता दूँगा। अब मुझे थोड़ी देर बाद निकलना है। अब फोन रखता हूँ।" ये बोल के अशोक ने फोन रख दिए। अब आशीष सोचने लगा की अभी वो अशोक जो वचन दिआ शादी को लेकर, कैसे सुचित्रा देवी को बोलेगा। उसको किसी भी हालत में अपनी दिआ हुआ वचन निभाना है।
देखते देखते शाम के पाँच बज गए। बिकाश जी निकलने के लिए तैयार हुए। आशीष को बोले,"मे ये कम्पनी के सारे कागज लेकर साथ में जा रहा हूँ। ठीकसे दुकान बन्द करके आप आ जाइएगा। " इतना बोलकर बिकाश जी दुकान से निकल गए। अपनी घर पहुँच के कपड़े बदलकर पत्नी निशा देवी को लेकर निकले सुचित्रा देवी के घर। रास्ते से अच्छा मिठाई के डिब्बा लेकर गए। जब दोनों सुचित्रा देवी के घर पहुँचे तो उनकी स्वागत बड़े आनन्द के साथ सुचित्रा देवी की। खासकर उन्होंने निशा देवी को बोली, "आप बड़े दिनों के बाद हमारे घर आई है। ये हमारा सौभाग्य है।" तब आरती आकर सबको प्रणाम की। जब सब बैठ गए, तब बिकाश जी अपने साथ लेकर आये हुए कागज निकालकर कुछ बोलने जा रहे थे बितरक लेनेवाला काम के बारे में, तब सुचित्रा देवी बोली, " आप इसको अभी रखिए, जब आशीष आएगा तो एक साथ बैठ के इसके बारे में चर्चा करेंगे। अभी आप जो बात करने आए है, पहले उसके चर्चा करते है। हाँ, शायद आप लोगों का यहाँ से जाते जाते डेर होजाएगा, इसीलिए आशा बेटी को बोल दीजिए हमारा घर आने के लिए। हम सब साथ में रात की खाना खाएंगे। वो अकेली आपकी घर में कैसे रहेगी? " तब निशा देवी थोड़ा मना कर रही थी तो उनको सुचित्रा देवी बोली, "क्या आपकी ऊपर हमारा कोई अधिकार नहीं? आप इतने दिनों के बाद आई है तो खाना खाकर ही जाएंगी। और आशा को भी में जी भरके देखूंगी आज। ये मेरी बिनती है आप से।" इतना बोल के सुचित्रा देवी आरती को बोली," आरती, हम सब आज रात की खाना साथ में खाएंगे। आशा भी आएगी। इसकी सारे इन्तजाम कर लो बेटा।" आरती बहुत ख़ुश होकर बोली, "बहुत अच्छा होगा। हम सब एक साथ बैठ के खाना खाएंगे। मैं सारी तैयारी कर लेती हूँ माँ।" इतना बोलके आरती वहाँ से निकल गई चाय नाश्ता लाने के लिए। बिकाश जी ने फोन करके आशा को बोले की सुचित्रा देवी के घर आने के लिए। तब आशीष भी आकर घर पहुँच गाया। सब बहुत ख़ुश थे।