वचन (भाग -अठारा )....
वचन (भाग -अठारा )....
आशीष ने बिकाश जी और उनकी परिवार को उनके घर छोड़ने के बाद जब अपनी घर वापस आ रहा था, तब वो अशोक से बात किया । वो अशोक को उसका रिश्ते पक्का होने की ख़ुश खबर दिया और उसके साथ अपनी वितरक का काम के बारे भी बताया। आशीष ने उसे बोला, "अशोक आज में बहुत ख़ुश हूँ । माँ ने आज तुम्हारी और आशा की बात पक्की करके बहुत ख़ुश हुई है। हाँ, मैं माँ को बता दिया है की तुम अपना ये वितरक का काम को आगे बढ़ाने के लिए खूब बढ़िया से करने काबिल हों। ऐसे माँ ने बिकाश चाचा को बोल दिए की वो तुमको सब समझा देंगे। माँ इतने बड़े जिम्मेदारी अब हम दोनों के ऊपर छोड़ दी है। तुम मुम्बई में रहकर इस कम्पनी का मुख्य दफ्तर की सारे काम संभाल लेना और यहाँ की काम मैं संभाल लूँगा। और तुम अभी कम से काम हर एक दो महीने में एक बार यहाँ अगर आओगे तो मेरा हिम्मत भी बढ़ जाएगा। अब मैं बिकाश चाचा और उनकी परिवार को उनके घर छोड़ के वापस घर जारहा हूँ ।" आशीष का ये बात सुनकर अशोक बहुत ख़ुश हुआ और बोला, "ठीक है भाई। मे भी बहुत ख़ुश हुआ आप से ये सुन के। अभी ठीक से घर पहुँच जाओ। रात भी हों चूका है| मैं फिर बाद मे तुमसे बात करूँगा। अपना, भाभी की और माँ की ख्याल रखना। अभी फोन रखता हूँ ।" इतना बोल के अशोक फोन रख दिया और आशीष भी फोन रख दिया । आशीष घर पहुँच के गाड़ी को अपने जगह रखकर अपनी कमरे में गया। देखा तब तक सुचित्रा देवी जागी हुई थी। आशीष को देख कर वो बोली, "अब तू आ गया तो ठीक है। मैं जाती हूँ अभी सोने के लिए। तू भी जाकर विश्राम ले और अपनी भाई से कल बात कर लेना। "इतना बोलकर सुचित्रा देवी थोड़ी मुस्कुराई और उठकर चली गई। आशीष भी अपने कमरे मे जाकर देखा की आरती तब तक शो चुकी है। वो अपना कपडे बदलकर शोने के लिए चला।
अगले दिन सुबह आशीष तैयार होकर अपनी दुकान के लिए निकल रहा था तो सुचित्रा देवी ने बोली," बेटा तूने तेरा सास ससुर से कोई बात किया ? समय निकाल के उनसे एक बार मिल लेना। मैं भी समधन जी से बात कर लूँगी। पता नहीं सरोज के वजह से कितने परेशान होते होंगे दोनों।" आशीष ने सुचित्रा देवी को हाँ बोलकर अपनी दुकान के लिए निकल गया। दुकान में पहुँचते ही उसने देखा की बिकाश जी कुछ कागज को लेकर व्यस्त है। उन्होंने आशीष को देखकर बोले, "बेटा, भाभी जी जैसी बोली थी मैं वैसे सारे कागज बना रहा हूँ। थोड़ी देर में बैंक जाकर नई संस्था के नाम पे पैसे जमा कर दूँगा। उसके बाद तुम फोन करके कम्पनी के प्रबंधक को कल बुला लेना। सारे लिखा पढ़ी क़ानून करके हम इस काम को शुरू करेंगे। हाँ मैं अशोक को फोन करके बोल दूँगा उसको क्या क्या करना होगा।" आशीष ने उनकी बात सुना और बोला, "आप जैसे बोलेंगे चाचा जी वैसे हम दोनों करते रहेंगे।" इतना बोलकर आशीष अपना जगह जा रहा था तब देखा महेश जी उसे फोन कर रहे है। वो तुरन्त फोन उठा लिया। महेश जी बहुत परेशान होकर बोले, " बेटा अब ये सरोज हमें जीने नहीं देगा। कल शाम को वो दुकान आकर बोला था की रोज वो दुकान आकर बैठेगा। मे कुछ नहीं बोला, चुप रहा। अभी वो दो और गुंडों के साथ आकर दुकान मे बैठा है। मुझे बोला है की आज से दुकान वो संभालेगा और दुकान उसका नाम कर देने के लिए। मैं क्या करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा है। मुझे डर लग रहा है की कहीं वो दुकान को नशे का अड्डा बना ना दे। इसीलिए तुम्हें फोन किया । " ये सुनके आशीष भी थोड़ा परेशान हो गया। आशीष को परेशान होते देख कर बिकाश जी ने उसे पूछे, "क्या हुआ बेटा? कौन बात कर रहे है? "तब आशीष ने बोला की महेश जी है और सरोज को लेकर उनका परेशानी बढ़ गया है। तब बिकाश जी उस से फोन लेकर महेश जी से बात किए और बोले, "आप परेशान मत होइए। अगर सम्भव है तो आप सुचित्रा भाभी के पास जाइए और मे भी वहाँ पहुँच जाऊँगा। वहाँ बैठके सारे बाते करेंगे।" तब महेश जी ने बोले, "अभी मे कोई भी बहाना करके निकलता हूँ समधन जी के पास। आप भी आइएगा।" इतना बोलके वो फोन रख दिए। बिकाश जी ने आशीष को बोले, "बेटा मे अभी तुरन्त भाभी जी के पास जा रहा हूँ ।वहाँ से मे बैंक होकर आऊँगा। तुम दुकान को संभाल लेना।" फिर बिकाश जी सुचित्रा देवी के घर के लिए निकल गए। आशीष ने फोन करके अशोक को सरोज के किए हुए काण्ड के बारे में बताया। अशोक ने बोला, "भाई, तुम भी थोड़ा शान्त रहो। देखो अभी घर मे माँ के साथ क्या बात होगा। मैं फोन करके पोलिस अधिकारी को सूचित कर देता हूँ । देखा जाएगा जो होगा। अब हम तो उसके जैसे गुंडागर्दी नहीं कर सकते है।"
महेश जी अपनी दुकान को जाकर सरोज को बोले, "क्या तुम लोग दुकान में ऐसे बैठे रहोगे? ग्राहक फिर आने में डरेंगे। बड़ी मेहनत से मे इस व्यापार को यहाँ तक लाया। अब मुझे जाना है सरकारी दापत्र शुल्क भरने के लिए। आने के बाद फिर तुमसे बैठ के बात करूँगा।" इतना बोलकर महेश जी वहाँ से निकल गए। पास के सारे दुकानदार उनको देखकर दुःखी हों रहे थे और उनकी डर के वजह से चुप भी थे। महेश जी ने जाते जाते अमिता देवी को सरोज का किए हुए काण्ड के बारे मे बोले और वो रोने लगी।
जब तक महेश जी ने सुचित्रा देवी के घर पहुँच े, तब तक बिकाश जी भी वहाँ पहुँच गए थे। महेश जी को सुचित्रा देवी घर के अन्दर बुला ली। आरती को सुचित्रा देवी बोले चाय बनाने के लिए। महेश जी वहाँ बैठते ही रोते हुए सरोज का किए हुए काण्ड के वारे मे बताए। वो बोले, "समधन जी उसका दुकान में बैठना कोई बात नहीं। पर वो जिन लोगों के साथ बैठा है, मुझे डर लग रहा है की कोई गलत काम वो लोग वहाँ से ना करें। जिस में मेरा बदनामी होगा और मे भी क़ानून के नजर मे एक अपराधी बन जाऊँगा। अब मैं क्या करूँ? मैं और अमिता गाँव जाकर आराम से रह सकते है। जमीन जायदाद है और मेरे सारे रिस्तेदार भी वहाँ है। वहाँ सरोज का कोई बदमाशी नहीं चलेगा।" तब सुचित्रा देवी बिकाश जी के और देखे। बिकाश जी बोले, "अगर ऐसी बात है तो आप दुकान को सरोज के नाम कर दीजिए। उसके पहले बैंक के सारे रकम अपनी नाम में जमा कर दीजिए। जिनको आप का पैसा देने का है, उनको भी दे दीजिए। फिर उसको छोड़ दीजिए उसका हाल पे।" फिर सुचित्रा देवी बोले, " इसमें आप थोड़ा समदी जी को मदद करने से अच्छा होगा। वो अब बहुत घबराए हुए है।" महेश जी भी ये बात समझ गए और वैसे करने का निर्णय लिए। अब उनको साथ देना का वचन बिकाश जी भी दिए।