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मिली साहा

Inspirational

4.8  

मिली साहा

Inspirational

वक़्त का खेल है सब यहांँ

वक़्त का खेल है सब यहांँ

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497


वक़्त की पटरी पर चलती, जीवन की रेल है,

बचपन जवानी बुढ़ापा सब वक़्त का खेल है,

बिना थके, बिना रुके दिखाता है, हर पड़ाव,

वक़्त के साथ न चलो तो ये ज़िन्दगी जेल है।


वक़्त के अधीन सब यहाँ वक़्त में जकड़े हुए,

सबकी चाबी है वो, अपने हाथों में पकड़े हुए,

हार-जीत सब इसका ही तो, है खेल यहाँ पर,

वक़्त जिसका उसी का राज, वही हैं छाए हुए।


देखा बचपन हमने, देखी है जवानी भी यहाँ,

वक़्त ने दिखाया हमें, बुढ़ापे की मजबूरियाँ,

कभी कड़ी धूप, कभी ठंडी छाँव ये ज़िन्दगी,

इंसान यहाँ, वक़्त के हाथों की कठपुतलियाँ।


वक़्त दिखाता ख़त्म होते जीवन की कहानी,

वक़्त जिसका है यहाँ , उसी की ये जिंदगानी,

वक़्त ख़्वाब संजोता है, वक़्त ही बिखेर देता,

वक़्त ही लाभ है ज़िन्दगी का, वक़्त ही हानि,


जीवन की बगिया में, सुख के फूल खिलाता,

तूफ़ान दुखों का कभी जीवन में लेकर आता,

मिलना है कभी अपनों से, कभी है बिछड़ना,

हमारे हाथ कुछ नहीं वक्त है सब कुछ करता।


दोस्त, रिश्तेदार, दुश्मन सब वक़्त की माया,

राजा हो या रंक सब पे यहाँ, वक़्त की छाया,

वक़्त रचाता ऐसे खेल, बच ना पाए कोई भी,

बड़े बड़े बलशालियों को, वक़्त ने है रुलाया।


सही गलत की पहचान, कराता है, यही वक़्त,

कौन अपना कौन पराया बताता है, यही वक़्त,

चेहरे पर चेहरा लगा ले, कोई कितना भी यहाँ,

एक दिन असली चेहरा दिखाता है, यही वक़्त।


खेल निराला अजब इसका, समझ सका कौन,

वक़्त ही हलचल जीवन की, वक़्त ही तो मौन,

पल में छीन ले राज ये, पल में ही पहना दे ताज,

वक़्त की ताकत का मुकाबला कर सका कौन।


इसके खेल में जो भी उलझे उलझता ही जाए,

वक़्त का पहिया जैसा घुमाए, वो घूमता जाए,

लाख मार लो, हाथ पैर और लगा लो, तरकीबें,

कुछ न सुलझे यहाँ पर, जब तक वक़्त न चाहे।


मंजिल तक ले जाता यही, यही कामयाबी तक,

सच्चे मन से कर्म करो, संभाल लेता वक़्त सब,

वक़्त से पहले मेहनत का फल भी नहीं मिलता,

कौन जाने यहाँ , किसका वक़्त बदल जाए कब।


जो इसकी महिमा समझे उसका ये मित्र समान,

गरीब सुदामा के मित्र थे स्वयं श्रीकृष्ण भगवान,

लंबे समय तक, कष्ट बेबसी को सहा, सुदामा ने,

किंतु वक़्त आया जब उसका तब हुआ कल्याण।


वक़्त से बड़ा ना कोई यहाँ , ना वक़्त से बलवान,

बदल जाता सब कुछ, जब तक सुनाता फरमान,

किंतु इतना भी होता निष्ठुर, निर्दयी नहीं ये वक़्त,

संभलने की देता चेतावनी, समझते कहाँ नादान।


वक़्त अपने खेल में, सबको कर लेता है शामिल,

वक़्त जिसके साथ नहीं उसकी हर राह मुश्किल,

एक बेगुनाह भी, हो जाता गुनहगार साबित यहाँ,

रूठ जाए जब वक़्त, सम्मान भी हो जाए धूमिल।


समझो वक़्त की माया को, करो उसका सम्मान,

वक़्त की कैद से आजाद नहीं, यहाँ कोई इंसान,

खेल-खेल में ही तो वक़्त देता है, बहुत कुछ हमें,

वक़्त के साथ जो चलता वही बनता यहाँ महान।



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