सफलतम भव:
सफलतम भव:


कितना शांत है माहौल,
तू ही कुछ अच्छा-सा बोल,
सब कुछ कितनी सरलता से
सुनियोजित घटित हो रहा है।
किंतु तू व्यर्थ ही चिंता कर,
गलाफाड़ रो रहा है।
औरों को देखता है
चांद पर जाते तू,
तेरे सपने क्या मर गए हैं ?
सब में तूने देखा
साहस-श्रम-स्वेद
तेरे गुण क्या डर गए हैं ?
क्या तुझे कहीं से भी नहीं
मिलती प्रेरणा ?
क्या तुझे कहीं से भी नहीं
मिलती प्रेरणा ?
क्या तू नहीं बनना चाहता बड़ा ?
क्या तू बस पशु-तुल्य पेट भरना ?
क्या तेरे घरवालों को नहीं
तुझसे उम्मीद ?
क्या तू स्वयं से ही
गया है हार ?
क्या तुझमें अवगुण हैं हज़ार ?
क्या तू यूं ही आलस्य-लाचार ?
अथवा अन्य हैं कुछ तेरे विचार ?
कुछ भी, कुछ भी हो
तुझे मानव बनना पड़ेगा
और श्रम-कर्म करना पड़ेगा,
क्योंकि सबको है प्रतीक्षा बहुत ,
तेरे उठ जाने की।
यदि समझता है
तू स्वयं को कमज़ोर
तो ये तेरी भयानक भूल है।
यदि तेरी राह का रोड़ा है
गरीबी तो तुझे इतिहास
ध्यान से देखना पड़ेगा।
यदि तुझे लगता है कि तू बीमार है,
कुछ कर नहीं सकता,
तो एक बार फिर से सोच,
क्या तेरी बीमारी
तेरे निश्चय, तेरे आत्मविश्वास,
तेरे पसीने और तेरे इरादे से
ज़्यादा बड़ी है।
यदि तेरे माता-पिता अनपढ़ हैं,
तुझे पढ़ा नहीं पाये,
तो तेरा दायित्व
और भी बढ़ जाता है।
अब तो तुझे अपनी संतान को
सफल माता-पिता अवश्य देना है।
और अपने जन्मदाता को भी,
गौरव प्रदान करना है।
यदि दुनिया क्या कहेगी
सोचता है
तो तू गलत राह पर है।
क्योंकि ये कुछ तो कहेगी ही
यदि तुझसे कभी कोई गलती हुई,
तो पछतावा नहीं।
सुधार कर
और जीत दुनिया।
यदि तू ही है
स्वयं तेरी बाधा,
तो पार कर
और बन विजेता।
क्योंकि दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं,
क्योंकि दुनिया में सब कुछ संभव है।
और तुझे भी विधाता ने ही,
उसी मिट्टी से बनाया है
और तू भी वो सब कुछ कर सकता है,
जो किसी ने भी,
कहीं भी, कभी भी, किया है।
तो अभी इसी वक्त से
कुछ करने का प्रण ले,
बन तो अपने आप जायेगा।
देर कभी नहीं होती,
जब जागो तभी सवेरा।
यूं भी यह संसार कर्म प्रधान है
तो 'कर्मण्यवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन:'
अभी से लो आत्मविश्वास,
श्रम, साहस, निर्भीकता,
आत्मसम्मान, उत्साह, लगन,
दृढ़-निश्चय, माता-पिता
तथा बड़ों का आशीर्वाद
और एक लक्ष्य।
फिर जीवन सफल है
फिर तेरा ही कल है।
आत्मविश्वास को
बनाओ अपना सखा।
जीवन का हर प्राप्त,
इसमें ही रखा सफलतम भवः