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Dr. Nidhi Priya

Inspirational

4.9  

Dr. Nidhi Priya

Inspirational

मेरी आत्मकथा

मेरी आत्मकथा

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जब बनकर ज्वाला फूट पड़ी

मेरे अन्तर्मन की मूक व्यथा

लो अश्रुपूरित नेत्र लिए

मैंने लिख डाली यह आत्मकथा


मैंने रच डाला उन तिनकों से

जीवन का एक छोटा-सा घर

नियति के विकट थपेडों ने

जिन्हें बिखराया था इधर-उधर


अब उन्हें जोड़ कर यत्नों से

मैं निभा रही जीने की प्रथा

लो अश्रुपूरित नेत्र लिए

मैंने लिख डाली यह आत्मकथा


मुझे याद अभी तक आती है

जो बीती वो सारी बातें

वो बचपन के खाली से दिन

वो लम्बी और काली रातें


मैं दुःख का सागर पीती थी

मेरा हँसता संसार न था

लो अश्रुपूरित नेत्र लिए

मैंने लिख डाली यह आत्मकथा


जब बच्चे खेला करते थे

गलियों में शोर मचाते हुए

तब घर में बैठी रहती थी

मैं किस्मत पे शरमाते हुए


मेरे जीवन की कुटिया में

बचपन का कमरा खाली था

लो अश्रुपूरित नेत्र लिए

मैंने लिख डाली यह आत्मकथा


खोई रहती थी सपनों में

उनको पूरा करती कैसे

कष्टों की नदिया के तीरे

थी बिता रही जीवन ऐसे


जैसे फूलों के बीज लिए

कोई बिना बाग का माली था

लो अश्रुपूरित नेत्र लिए

मैंने लिख डाली यह आत्मकथा


जब बड़ी हुई तो यह जाना

मुझे ऐसे ही जीना होगा

यह जीवन विष का प्याला है

इसे घूंट-घूंट पीना होगा


उस नीलकंठ ने पी डाला

वह विकट हलाहल-सार यथा

लो अश्रुपूरित नेत्र लिए

मैंने लिख डाली यह आत्मकथा


दुःख से घबराना छोड़ दिया

कब तक कोई निराश रहे

बड़ी कठिन डगर है जीवन की

पर चलूंगी जब तक साँस रहे


जैसा निश्चय है मेरा अब

मैं प्रयत्न करुंगी सदा तथा

लो अश्रुपूरित नेत्र लिए

मैंने लिख डाली यह आत्मकथा


इस जग में मैंने सीखा है

हर संकट में बढ़ते जाना

यह जीवन एक चढ़ाई है

हँसकर इसको चढ़ते जाना


तुम हार कभी भी मानो ना

यही सिखा रही जीवन-गाथा

लो अश्रुपूरित नेत्र लिए

मैंने लिख डाली यह आत्मकथा


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