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Dr. Nidhi Priya

Abstract

3.8  

Dr. Nidhi Priya

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आत्म-उद्बोधन

आत्म-उद्बोधन

2 mins
666


जीवन में जब कभी अकेली पड़ जाओ

सुनसान राहों में खड़ी रहो और डर जाओ

तब याद रखना कि मैं तुम्हारे साथ हूँ

तुम चित्रकार हो और मैं तुम्हारे हाथ हूँ


"मैं कौन हूँ"- क्या तुम नहीं जानती ?

क्यों कभी मेरे अस्तित्व को तुम नहीं मानती ?

मैं तुम्हारी शक्ति, तुम्हारी अंतरात्मा हूँ

तुम अज्ञानी हो, मैं साक्षात् परमात्मा हूँ


जीवन में पग-पग पर मैं तुम्हे देखती हूँ

और अपने स्नेह-जल से सदा तुम्हे सींचती हूँ

पर तुम व्यर्थ ही अपनी तृषा बुझाने को भटकती हो

मैं सहारा देने आऊँ तो हाथ अपने झटकती हो


तुम जब स्वयं में मुझे ढूंढोगी, मेरे पास आओगी

वहाँ तुम एक अथाह विशाल प्रेम का सागर पाओगी

क्यों तुम निराश रहती हो, क्यों इतने दु:खों को पिए हो

मैं हूँ न तुम्हारे साथ और तुम मेरे लिए हो


देखो, खुश रहना चाहती हो तो किसी से कोई आशा न करो

कोई इच्छा, कोई कामना, कोई अभिलाषा न करो

यह मत सोचो कि तुमने क्या पाया और क्या खोया है

सबने उतना ही काटा, जितना इस जग में बोया है


क्या दिया है तुमने जग को, अब केवल यही विचार करो

सुख बाँटो और दु:खों को सबके तुम स्वीकार करो

याद रखो कि अभी तुम्हे, अपना लक्ष्य है पाना

डगर कठिन है, मगर पड़ेगा तुमको जाना


चलो उठो मत रुको कभी, तुम हार न मानो

सफल करो इस जीवन को बस इतना जानो

तुम्हें दु:खों की कड़ी धूप में तपना होगा


तब ही तो सम्पूर्ण सुनहरा सपना होगा

तब ही तो सम्पूर्ण सुनहरा सपना होगा।


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