सपना देखा
सपना देखा
कल रात अचानक सपने में
मैंने देखा तुझे अपने संग
मेरी सूनी-सी दुनिया में
बिखर गए जाने कितने रंग।
एक प्यारा-सा घर देखा था
जिसमें था छोटा-सा आँगन
आँगन में एक गलीचे पर
बैठा था तू मेरे साजन।
वहीं कहीं इक चूल्हे पर
सेंक रही थी रोटी मैं
पहनी थी सतरंगी साड़ी
और फूल लगे थे चोटी में।
पर तभी अचानक आँख खुली
और सबकुछ कहीं नदारद था
तब जाकर मुझको पता चला
वह कोई सपना शायद था।
क्या सच होगा सपना मेरा
यह सोच-सोच अब घबराऊँ
मन मेरा आगे भाग रहा
और मैं पीछे छूटी जाऊँ।

