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Dr. Nidhi Priya

Abstract

4.1  

Dr. Nidhi Priya

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विदा-गीत

विदा-गीत

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463


कभी खुशियाँ हैं कभी शिकवे हैं

कुछ अनुभव मीठे-कड़वे हैं

कुछ बीते कल की यादें हैं

आते पल की भी बातें हैं

कभी नए खिले फूलों की तरह

कभी लगती बहुत पुरानी है

जीवन की यही कहानी है


कभी धूप खिली है चारों तरफ

कहीं अंधियारी-सी छाँव मिले

कहीं फूल बिछे हैं राहों में

कभी चलते-चलते पाँव छिलें

लगती है जानी-पहचानी

फिर भी ये बड़ी अनजानी है

जीवन की यही कहानी है


यहाँ इक पल भी कुछ रुकता नहीं

वक्त किसी के आगे झुकता नहीं

इक सफर है यह, तय करना है

मंज़िल है कहाँ कुछ खबर नहीं

चलती है ये बल खाती हुई

जैसे दरिया की रवानी है

जीवन की यही कहानी है


यहाँ आज विदा की बेला में

हम सब आए हैं मिल कर के

लो बीत गए हैं वो लम्हे

जो साथ गुजारे थे हमने

मुख पर सबके मुस्कान तो है

पर आँखों में भी पानी है

जीवन की यही कहानी है


इस नीड़ को अब हम छोड़ चले

सबसे ही नाता तोड़ चले

पर यहाँ की मीठी यादों को

हम अपने मन से जोड़ चले

अब दूर बहुत ही जाना है

इक दुनिया नई बसानी है

जीवन की यही कहानी है।


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