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Dr. Nidhi Priya

Tragedy

3.9  

Dr. Nidhi Priya

Tragedy

आखिर क्यों सुशान्त....?

आखिर क्यों सुशान्त....?

2 mins
276


आहत हूँ मैं, भरी हुई हूँ

सुनकर तेरा आत्म-हनन,

जब तक लिख डालूँ न कुछ भी

दु:ख का होगा नहीं शमन।


शूल समझकर जिस जीवन को

तुमने आज मिटा डाला,

वंश-वृक्ष का मुख्य तना वह

अपने हाथ कटा डाला।


राजपूत कहलाता था जो

कायरता दिखलाई क्यों ?

संकट से घबराकर तुमने

अपनी जान गँवाई क्यों ?


राजपूत वह होता है जो

हर संकट से लड़ता है,

शेर भेड़ियों से डरकर 

कब अपनी राह बदलता है ?


पिता को भी संताप दिया और

जग को तुमने क्लेश दिया,

नवपीढ़ी को तुमने अपना

कैसा यह संदेश दिया ?


देख जवान कितने ही नित

सीमा पर मारे जाते हैं,

देश की आन बचाने को

वे अपनी जान गँवाते हैं ।


पर उनकी माताएँ विचलित हो

आँसू नहीं बहाती हैं,

हो अभिमान से उन्नत-मस्तक

अपना शोक छिपाती हैं ।


क्या तेरी माँ खुश होगी

जब उनसे मिलने जाएगा,

दायित्वों को छोड़कर आया

क्या उनसे कह पाएगा ?


असल मेंं जो गमलों के पौधे

धूप सहन नहीं करते हैं,

शीघ्र नष्ट हो जाते हैं वो

कष्ट वहन नहीं करते हैं ।


वहीं प्रखर चट्टान पर उगकर

वृक्ष खड़ा जो होता है,

आँधी-तूफ़ानों से लड़कर

दिन-रात बड़ा वह होता है ।


तुमसे ही कुछ दिन पहले

इरफ़ान बेचारा चला गया,

युद्ध न हारा मर कर जीता

पर किस्मत से छला गया ।


पता उसे था अंत निकट है

जहर ये उसने पी ही लिया,

अपनी अंतिम साँसों तक यह

जीवन उसने जी ही लिया ।


जीवन इतना मूल्यहीन जो 

होता तो महामारी में,

पैदल मीलों रस्ता गरीब

क्या तय करते लाचारी में ?


अपने देश में बने प्रवासी

बच्चों-बूढ़ों-महिलाओं को,

क्या तुम देख न पाए उनके

तन और मन के घावों को ?


पैर के छाले, भूख, बीमारी

उनकी राह न रोक सकी,

जीवन उनसे छीन न पाई

मौत की आग में न झोंक सकी ।


कितनी मुश्किल से मिलता है

जीवन तुम-सा जीने को,

दो-वक्त की रोटी मिलती है

बहाकर खून-पसीने को ।


कर्ज तले दब कर किसान जब

आत्म-हनन कर लेते हैं,

उनकी मजबूरी का फिर भी सब

आकलन कर लेते हैं ।


क्या कारण था जो तुमने

ऐसा निर्णय कर डाला,

इक अनबूझ पहेली बनकर 

सबको संशय में डाला ।


चले गए तुम असमय अचानक

भर न सके वह क्षति हुई

कोई यह न जान सका पर

क्यों यह तुम्हारी गति हुई ?


संभावना से भरे हुए तुम

जीवन-पथ पर शोभित थे,

यह किंचित् भी पता चला न

कष्ट में थे और क्षोभित थे ।


एक ही क्षण में जाने ऐसी

निष्ठुरता दिखलाई क्यों,

हरीभरी-जीवन-बगिया में

अपने हाथों आग लगाई क्यों ?


क्या वह विकट विवशता थी

यह सबको काश बताते तुम, 

अपने गुण-पुष्पों से जग की

बगिया और सजाते तुम !



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