आखिर क्यों सुशान्त....?
आखिर क्यों सुशान्त....?
आहत हूँ मैं, भरी हुई हूँ
सुनकर तेरा आत्म-हनन,
जब तक लिख डालूँ न कुछ भी
दु:ख का होगा नहीं शमन।
शूल समझकर जिस जीवन को
तुमने आज मिटा डाला,
वंश-वृक्ष का मुख्य तना वह
अपने हाथ कटा डाला।
राजपूत कहलाता था जो
कायरता दिखलाई क्यों ?
संकट से घबराकर तुमने
अपनी जान गँवाई क्यों ?
राजपूत वह होता है जो
हर संकट से लड़ता है,
शेर भेड़ियों से डरकर
कब अपनी राह बदलता है ?
पिता को भी संताप दिया और
जग को तुमने क्लेश दिया,
नवपीढ़ी को तुमने अपना
कैसा यह संदेश दिया ?
देख जवान कितने ही नित
सीमा पर मारे जाते हैं,
देश की आन बचाने को
वे अपनी जान गँवाते हैं ।
पर उनकी माताएँ विचलित हो
आँसू नहीं बहाती हैं,
हो अभिमान से उन्नत-मस्तक
अपना शोक छिपाती हैं ।
क्या तेरी माँ खुश होगी
जब उनसे मिलने जाएगा,
दायित्वों को छोड़कर आया
क्या उनसे कह पाएगा ?
असल मेंं जो गमलों के पौधे
धूप सहन नहीं करते हैं,
शीघ्र नष्ट हो जाते हैं वो
कष्ट वहन नहीं करते हैं ।
वहीं प्रखर चट्टान पर उगकर
वृक्ष खड़ा जो होता है,
आँधी-तूफ़ानों से लड़कर
दिन-रात बड़ा वह होता है ।
तुमसे ही कुछ दिन पहले
इरफ़ान बेचारा चला गया,
युद्ध न हारा मर कर जीता
पर किस्मत से छला गया ।
पता उसे था अंत निकट है
जहर ये उसने पी ही लिया,
अपनी अंतिम साँसों तक यह
जीवन उसने जी ही लिया ।
जीवन इतना मूल्यहीन जो
होता तो महामारी में,
पैदल मीलों रस्ता गरीब
क्या तय करते लाचारी में ?
अपने देश में बने प्रवासी
बच्चों-बूढ़ों-महिलाओं को,
क्या तुम देख न पाए उनके
तन और मन के घावों को ?
पैर के छाले, भूख, बीमारी
उनकी राह न रोक सकी,
जीवन उनसे छीन न पाई
मौत की आग में न झोंक सकी ।
कितनी मुश्किल से मिलता है
जीवन तुम-सा जीने को,
दो-वक्त की रोटी मिलती है
बहाकर खून-पसीने को ।
कर्ज तले दब कर किसान जब
आत्म-हनन कर लेते हैं,
उनकी मजबूरी का फिर भी सब
आकलन कर लेते हैं ।
क्या कारण था जो तुमने
ऐसा निर्णय कर डाला,
इक अनबूझ पहेली बनकर
सबको संशय में डाला ।
चले गए तुम असमय अचानक
भर न सके वह क्षति हुई
कोई यह न जान सका पर
क्यों यह तुम्हारी गति हुई ?
संभावना से भरे हुए तुम
जीवन-पथ पर शोभित थे,
यह किंचित् भी पता चला न
कष्ट में थे और क्षोभित थे ।
एक ही क्षण में जाने ऐसी
निष्ठुरता दिखलाई क्यों,
हरीभरी-जीवन-बगिया में
अपने हाथों आग लगाई क्यों ?
क्या वह विकट विवशता थी
यह सबको काश बताते तुम,
अपने गुण-पुष्पों से जग की
बगिया और सजाते तुम !