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Kanchan Jharkhande

Inspirational

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Kanchan Jharkhande

Inspirational

मुफ़लिस

मुफ़लिस

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मुझे गर्व है कि मुफ़लिस ने मुझे जन्मा

मुझे परवाह नहीं संसार मुझे किस नजर से देखें

इस धरती पर मेरा अधिकार सिद्ध हैं

मैंने ज़िया है इस माटी की खुशबू को


मेरे रग रग में बसी है इसकी ताकत

मुझे प्रिय है मेरी अनुवर्ता 

मैंने महसूस किये है लाचारी के पल

मुझे स्मरण है मेरी माँ का माथे 

पर मिट्टी का गट्ठा लाना


मैंने गुजारे है दिन किलपान के

मैंने सहीं है कुटुम्ब की भुखमरी 

चूल्हे की फूंक और ठंडी लकड़ी का धुआँ

आधी पकी आधी कच्ची रोटी का स्वाद

मिर्ची संग नमक का आपन्न और 

मैंने झेला है उच्च जातीय द्वारा 

किया गया भेदभाव, पक्षकोम।


निर्जल आँखों में थी फिर भी रही प्रेम भावनाएं

क्योंकि माँ ने नहीं सिखाया कभी पक्षपात

माँ ने पढ़ाया तो केवल उभरने के अध्याय

माँ ने बताई मेहनत की पगडंडी

कच्ची माटी का वो घर आज भी आँखों के सामने है

जो अब पक्की सीमेंट की दीवारें बन गयी है


माटी का आँगन भी अब मिंटो हाल बन गया

चूल्हे की जगह गैस पर उबलता है दूध का भगोना

वस्त्रों की वेशभूषा भी तो बदल गयी है

ओर बदल चुका उन चिड़ियों का रास्ता

जो उन दिनों एक झुंड बनाकर

घर के ऊपर से गुजरती थी


सूरज का ढलना तो जारी है पर 

ऊंची इमारतों के पीछे छिप जाता हैं अब

मन्दिर का पीपल का पेड़ भी कट चुका

जिनमें झूले थे हमने मित्रों संग झोंकें

सच कहूँ तो…


उन उत्पीड़न के पलों ने दी मुझे आज़ादी

मजबूत रखा मेरे हौसलों को 

मुझे सहारा दिया गरीबता कि विपत्तियों ने

आख़िर उसका शुक्रियादा कैसे ना करूँ


मेरी गरीबता ने मुझे आसमान

छूने के जरिये सिखाये

आज मैं हूँ जो भी हूँ 

तह ऐ दिल से आभार 

मेरी गुजरी हुई गरीबी को

मुझे फ़क्र है कि मैं मुफ़लिस हूँ।


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