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Abhishu sharma

Comedy Others

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Abhishu sharma

Comedy Others

तुम और हम

तुम और हम

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तू छुपती है , गुपचुप कर देखती -मचलती है ,

रूखे अल्फ़ाज़ों से घिरे रूठे फ़लसफ़ों सा ,

दमकते फर्श पर पानी सा फिसलती है हथेली पर मेरी , मानो 

बर्फ की सिल्ली पर मासूम दीवार ओढ़ती, आहत कोई बिल्ली की आहट,

कड़वाहट का लेप लगाए मिश्री की डली पर चढ़ी मासूम मूषक की बलि सी। 


मारती है ताने मेरे दिल की नरम चादर पर ,

सादर पड़ा हूँ एक कोने में , घिसी हुई माचिस की अधजली तीली सा।


ठूंठ सा हूँ खड़ा , झाड़ पे चढ़ा ,

दिखाती है औकात मेरी मुझे , अब

खूंटे से बंधा जैसे गाँव की ताज़ी सरपट बहती हवा में

घुली स्नेह में लिप्त परवाह करती वो अनपढ़ गाली गीली सी।


हरियाली के नीचे पड़े सूखे पत्तों के बिछौने पर पड़ा मैं , पहने

मुंगेरी - लाल के सपने मेरे अपने , जैसे

बिखरी बंजर ज़मीन का निकाह पढ़ाया ,

पूर्णिमा के चाँद की चांदनी चुराते चकोर शहज़ादे से 


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